नेह का
नीर पिलाकर देखो
कुछ
नये फूल खिलाकर देखो
कभी रोते
हुए इक बालक को
एक खिलौना
तो दिलाकर देखो
कोई
दिल संगेदिल नहीं होता
दिल कभी
दिल से मिलाकर देखो
बून्द
अमृत की तली में बैठी
पात्र
को अपने हिलाकर देखो
मंजिलें
आपको बुलाती हैं
अपने
कदमों को चलाकर देखो
दोस्ती
का यही तकाज़ा है
बैर का
भाव भुलाकर देखो
प्यार
का “रूप” नज़र आयेगा
दिल
में इक दीप जलाकर देखो
|
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बुधवार, 20 नवंबर 2013
"दिल में इक दीप जलाकर देखो" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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सुन्दर प्रस्तुति-
जवाब देंहटाएंआभार गुरुवर --
वर्तनी की अशुद्धियों के बारे में आपने जो इंगित किया है आइंदा के लिए गांठ बाँध ली है। लेकिन आप से निवेदन है आप हमारी अशुद्धियां सार्वजनिक करें ,ताकि हमें लगे कोई हमें भी अपना समझे है। ब्लॉग जगत में सभी हमारे आदरणीय भाई बहन सखा हैं।
जवाब देंहटाएंदोस्ती का यही तकाज़ा है
जवाब देंहटाएंबैर का भाव भुलाकर देखो
हम भी आपके बहुत अपने हैं ,
हाथ दोनों बढ़ाकर देखो।
बहुत प्यारी गज़ल कही है।
वाऽहऽऽ…!!!!! वाऽहऽऽ…!!!!!
जवाब देंहटाएंबहुत खूब .......
मंजिलें आपको बुलाती हैं
जवाब देंहटाएंअपने कदमों को चलाकर देखो
दोस्ती का यही तकाज़ा है
बैर का भाव भुलाकर देखो
बहुत सुंदर.
आपने तो दिल पर मोमबत्ती रख दी हटा दीजिये ना नहीं तो जल जायेगा :)
जवाब देंहटाएंसुंदर सन्देश...
जवाब देंहटाएंबढ़िया सार्थक प्रस्तुति ..
जवाब देंहटाएंसुन्दर भाव-संचरण
जवाब देंहटाएंजलाओ दिए आज अपने दिलों में
तिमिर इस धरा पे कहीं रह न जाए
दोस्ती का यही तकाज़ा है
जवाब देंहटाएंबैर का भाव भुलाकर देखो
सुन्दर शब्द रचना
http://savanxxx.blogspot.in