गुस्सा-प्यार और मनुहार
आँखें कर देतीं इज़हार
नफरत-चाहत की भाषा का
आँखों में संचित भण्डार
बिन काग़ज़ के, बिना क़लम के
लिख देतीं सारे उद्गार
नहीं छिपाये छिपता सुख-दुख
करलो चाहे यत्न हजार
पावस लगती रात अमावस
हो जातीं जब आँखें चार
नहीं जोत जिनकी आँखों में
उनका है सूना संसार
“रूप” इन्हीं से जीवन का है
आँखें कुदरत का उपहार
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गुरुवार, 28 नवंबर 2013
"ग़ज़ल-आँखें कुदरत का उपहार" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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वाह...
जवाब देंहटाएंपावस लगती रात अमावस
हो जातीं जब आँखें चार
बहुत ही सुन्दर रचना....
सादर
अनु
nice post aabhar
जवाब देंहटाएंक्या बात है!
जवाब देंहटाएंआपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति 29-11-2013 चर्चा मंच-स्वयं को ही उपहार बना लें (चर्चा -1445) पर ।। सादर ।।
जवाब देंहटाएंवाह ! बहुत सुन्दर रचना !
जवाब देंहटाएंनई पोस्ट तुम
http://hindibloggerscaupala.blogspot.in/ की शुक्रवारीय २९/११/२०१३ की चोपाल पर आपकी रचना शामिल की गयी हैं कृपया अवलोकन हेतु पधारे .....धन्यवाद
जवाब देंहटाएं.. वाह ... बेहतरीन प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंनींद चैन सब उड़ जाएगा ,
जवाब देंहटाएंमत करना तुम आँखें चार।
सुन्दर भाव बोध की रचना है :
/पाव स लगती रात अमावस
हो जातीं जब आँखें चार
नहीं जोत जिनकी आँखों में
उनका है सूना संसार