कल तक मस्त वज़ीर थे, आज हुए हैं त्रस्त।
आम आदमी ने किये, सभी हौसले पस्त।।
दशकों से खाते रहे, नोच-नोचकर देश।
वीराना सा कर दिया, उपवन का परिवेश।।
छेद स्वयं के पात्र में, करने लगे दलाल।
हुए एकजुट लोग तब, दशा देख विकराल।।
मत के प्रबल प्रहार से, दुर्ग कर दिया ध्वस्त।
आम आदमी ने किये, सभी हौसले पस्त।।
दुर्बल को खाने लगीं, जब ये मोटी मीन।
जीने के अधिकार सब, लिए इन्होंने छीन।
लोकतन्त्र में बचा तब, मत का शेष विकल्प।
अन्तस की आवाज का, मन में था संकल्प।।
अब वो खाली हो गये, कल तक जो थे व्यस्त।
आम आदमी ने किये, सभी हौसले पस्त।।
जनता का जनतन्त्र है, आज हुआ आभास।
मत की ताकत पर सदा, रखना है विश्वास।।
खून-खराबे का नहीं, भारत में कुछ काम।
परिवर्तन का आम ही, करते पूरा काम।।
चाहे जिस दल का करें, उगता सूरज अस्त।
आम आदमी ने किये, सभी हौसले पस्त।।
निर्धन को धनवान सा, सुलभ सदा हो न्याय।
नहीं किसी के साथ हो, भेद-भाव अन्याय।।
भारत माता कर रही, कब से यही पुकार।
भ्रष्ट सियासत की नहीं, भारत को दरकार।।
संसद में पहुँचे नहीं, रिश्वत के अभ्यस्त।
आम आदमी ने किये, सभी हौसले पस्त।।
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शुक्रवार, 13 दिसंबर 2013
"दोहागीत-आम आदमी" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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“ हिन्दी में रेफ लगाने की विधि ” अक्सर देखा जाता है कि अधिकांश व्यक्ति आधा "र" का प्रयोग करने में बहुत त्र...
बहुत सुंदर.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (14-12-2013) "नीड़ का पंथ दिखाएँ" : चर्चा मंच : चर्चा अंक : 1461 पर होगी.
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है.
सादर...!
जनता का जनतन्त्र है, आज हुआ आभास।
जवाब देंहटाएंमत की ताकत पर सदा, रखना है विश्वास।।
जनता का जनतन्त्र है, आज हुआ आभास।
जवाब देंहटाएंमत की ताकत पर सदा, रखना है विश्वास।।
चाहे जिस दल का करें, उगता सूरज अस्त।
जवाब देंहटाएंआम आदमी ने किये, सभी हौसले पस्त।
सुन्दर अभिव्यक्ति...!
RECENT POST -: मजबूरी गाती है.
जनतंत्र ने तो छक्के छुड़ा दिए हैं..कई लोगो को धोबीपाट दे दिया है....हकीकत की जमीन इतनी सख्त हो सकती है ये देख कर कई नेताओं को अबतक होश नहीं आया है।
जवाब देंहटाएंवाह बहुत सुंदर!
जवाब देंहटाएंबढ़िया है गुरुवर -
जवाब देंहटाएंआभार आपका-
बहुत सुन्दर , सर जी
जवाब देंहटाएंनिर्धन को धनवान सा, सुलभ सदा हो न्याय।
जवाब देंहटाएंनहीं किसी के साथ हो, भेद-भाव अन्याय।।
भारत माता कर रही, कब से यही पुकार।
भ्रष्ट सियासत की नहीं, भारत को दरकार।।
संसद में पहुँचे नहीं, रिश्वत के अभ्यस्त।
आम आदमी ने किये, सभी हौसले पस्त।।
बेहतरीन सामयिक रचना आइना दिखाती सत्ता के थोक दलालों को।
SUNDAR PAR ABHI TO AAM AADMI KE BHI HAUSLE PAST HI HAIN
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंजनता की सोच का स्पष्ट संकेत
जवाब देंहटाएं