गये साल को है प्रणाम!
है नये साल का अभिनन्दन।।
लाया हूँ स्वागत करने को
थाली में कुछ अक्षत-चन्दन।।
है नये साल का अभिनन्दन।।
गंगा की धारा निर्मल हो,
मन-सुमन हमेशा खिले रहें,
हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई के,
हृदय हमेशा मिले रहें,
पूजा-अजान के साथ-साथ,
होवे भारतमाँ का वन्दन।
है नये साल का अभिनन्दन।।
नभ से बरसें सुख के बादल,
धरती की चूनर धानी हो,
गुरुओं का हो सम्मान सदा,
जन मानस ज्ञानी-ध्यानी हो,
भारत की पावन भूमि से,
मिट जाए रुदन और क्रन्दन।
है नये साल का अभिनन्दन।।
नारी का अटल सुहाग रहे,
निश्छल-सच्चा अनुराग रहे,
जीवित जंगल और बाग रहें,
सुर सज्जित राग-विराग रहें,
सच्चे अर्थों में तब ही तो,
होगा नूतन का अभिनन्दन।
है नये साल का अभिनन्दन।।
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शनिवार, 31 दिसंबर 2016
गीत "नूतन वर्ष का अभिनन्दन" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
शुक्रवार, 30 दिसंबर 2016
गीत "शीतलता ने डाला डेरा" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
मैदानों में कुहरा छाया।
सितम बहुत सरदी ने ढाया।।
सूरज को बादल ने घेरा,
शीतलता ने डाला डेरा,
ठिठुर रही है सबकी काया।
सितम बहुत सरदी ने ढाया।।
कलियों पर मौसम के पहरे,
बहुत निराश हो रहे भँवरे,
गुंजन उनको रास न आया।
सितम बहुत सरदी ने ढाया।।
सरसों के सब बिरुए रोते,
गेहूँ अपना धीरज खोते है,
हरियाली का हुआ सफाया।
सितम बहुत सरदी ने ढाया।।
बया नीड़ से झाँक रही है,
इधर-उधर को ताँक रही है,
शीतलता ने हाड़ कँपाया।
सितम बहुत सरदी ने ढाया।।
बूढ़े-बच्चे काँप रहे हैं,
सभी आग को ताप रहे हैं,
हिम पर्वशिखरों पर छाया।
सितम बहुत सरदी ने ढाया।।
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गुरुवार, 29 दिसंबर 2016
दोहे "हुआ समय विकराल" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
नया तीर तूणीर से, मत करना तामीर।
नये साल में देश की, बदलेगी तसबीर।।
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छलनी को होता पता, कितने उसमें छेद।
काला धन जितना रहा, सब हो गया सफेद।।
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बड़बोलेपन के लिए, जो जग में बदनाम।
जनता के मुख पर चला, देने वही लगाम।।
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सीधी-सच्ची बात में, करते लाग-लपेट।
भाषण से ही भर रहे, जनता का वो पेट।।
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दाम गाँठ में हैं नहीं, हुआ समय विकराल।
अब भी श्रमिक-किसान की, हालत खस्ताहाल।
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चलते बिना कमान के, मुख से जिनके तीर।
जनता के सेवक हुए, अब तो भाषणवीर।।
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मेहनतकश मजदूर है, आज मजे से दूर।
रोटी-रोजी के लिए, कितना है मजबूर।।
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बुधवार, 28 दिसंबर 2016
गीत "सब स्वप्न हो गये अंगारे" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
नव-वर्ष खड़ा द्वारे-द्वारे!
नव-वर्ष खड़ा द्वारे-द्वारे!
गधे चबाते हैं काजू,
महँगाई खाते बेचारे!!
काँपे माता काँपे बिटिया, भरपेट न जिनको भोजन है,
क्या सरोकार उनको इससे, क्या नूतन और पुरातन है,
सर्दी में फटे वसन फटे सारे!
नव-वर्ष खड़ा द्वारे-द्वारे!!
जो इठलाते हैं दौलत पर, वो खूब मनाते नया-साल,
जो करते श्रम का शीलभंग,वो खूब कमाते द्रव्य-माल,
वाणी में केवल हैं नारे!
नव-वर्ष खड़ा द्वारे-द्वारे!!
नव-वर्ष हमेशा आता है, सुख के निर्झर अब तक न बहे,
सम्पदा न लेती अंगड़ाई, कितने दारुण दुख-दर्द सहे,
मक्कारों के वारे-न्यारे!
नव-वर्ष खड़ा द्वारे-द्वारे!!
रोटी-रोजी के संकट में, बस गीत-प्रीत के भाते हैं,
कहने को अपने सारे हैं, पर झूठे रिश्ते-नाते हैं,
सब स्वप्न हो गये अंगारे!
नव-वर्ष खड़ा द्वारे-द्वारे!!
टूटा तन-मन भी टूटा है, अभिलाषाएँ ही जिन्दा हैं,
कब जीवन में होंगी बहार, यह सोच रहा कारिन्दा हैं,
चमकेंगें कब सुख के तारे!
नव-वर्ष खड़ा द्वारे-द्वारे!!
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मंगलवार, 27 दिसंबर 2016
दोहे "आओ नूतन वर्ष" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
नये साल के साथ में, होगा खूब धमाल।।
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दरवाजा खटका रहा, नया-नवेला साल।
आशाएँ मन में जगीं, सुधरेंगे अब हाल।।
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आतुर हैं अब लोग सब, आओ नूतन वर्ष।
विपदाओं का अन्त हो, जीवन में हो हर्ष।।
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शायद नूतन साल में, शासन दे उपहार।
नीलगगन से धरा पर, बरसे सुख की धार।।
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भोजन करके पेटभर, लेवें सभी डकार।
मलयानिल से धरा पर, आयें सुखद बयार।।
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छन्दों में कविता करें, सब हो भावविभोर।
दोहों का उपहास अब, करें न दोहाखोर।।
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नहीं किसी के पाँव में, चुभें कहीं भी शूल।
बगिया में खिलते रहें, सुन्दर-सुन्दर फूल।।
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"नया साल-2017" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
बुलबुल गायें मधुर तराने, प्रेम प्रीत का हो संसार।
नया साल मंगलमय होवे, महके -चहके घर परिवार।।
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ऋतुओं में सुख की सुगन्ध हो,
काव्यशास्त्र से सजे छन्द हों,
ममता में समानता होवे, मिले सुता को सुत सा प्यार।
नया साल मंगल मय होवे, महके-चहके घर-परिवार।।
फूल खिलें हों गुलशन-गुलशन,
झूम-झूमकर बरसे सावन,
नदियों में कल-कल निनाद हो, मोर-मोरनी गायें मल्हार।
नया साल मंगल मय होवे, महके-चहके घर-परिवार।।
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भेद-भाव का भूत न होवे,
कोई पूत कपूत न होवे,
हिन्दी की बिन्दी की गूँजे, दुनियाभर में जय-जयकार।
नया साल मंगल मय होवे, महके-चहके घर-परिवार।।
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रविवार, 25 दिसंबर 2016
गीत "आने वाला है नया साल" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
आने वाला है नया साल।।
आशाएँ सरसती हैं मन में,
खुशियाँ बरसेंगी आँगन में,
सुधरेंगें बिगड़े हुए हाल।
आने वाला है नया साल।।
होंगी सब दूर विफलताएँ,
आयेंगी नई सफलताएँ,
जन्मेंगे फिर से पाल-बाल।
आने वाला है नया साल।।
सिक्कों में नहीं बिकेंगे मन,
सत्ता ढोयेंगे पावन जन,
अब नहीं चलेंगी वक्र-चाल।
आने वाला है नया साल।।
हठयोगी, पण्डे और ग्रन्थी,
हिन्दू-मुस्लिम, कट्टरपन्थी,
अब नहीं बुनेंगे धर्म-जाल।
आने वाला है नया साल।।
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वन्दना "मंजु-माला में कंकड़ ही जड़ता रहा" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
वन्दना वीणा-पाणि की पढ़ता रहा।।
पीछे मुड़ के कभी मैंने देखा नही,
धन के आगे कभी माथा टेका नही,
शब्द कमजोर थे, शेर गढ़ता रहा।
वन्दना वीणा-पाणि की पढ़ता रहा।।
भावनाओं में जीता रहा रात-दिन,
वेदनाओं को पीता रहा रात-दिन,
ज़िन्दग़ी की सलीबों पे चढ़ता रहा।
वन्दना वीणा-पाणि की पढ़ता रहा।।
मैंने हँसकर लिया, आपने जो दिया,
मैंने अमृत समझकर, गरल को पिया,
बेसुरी फूटी ढपली को मढ़ता रहा।
वन्दना वीणा-पाणि की पढ़ता रहा।।
कुछ ने सनकी कहा, कुछ ने पागल कहा,
कुछ ने छागल कहा, कुछ ने बादल कहा,
रीतियों के रिवाजों से लड़ता रहा।
वन्दना वीणा-पाणि की पढ़ता रहा।।
आपने जो लिखाया, वही लिख दिया,
शब्द जो भी सुझाया, वही रख दिया,
मंजु-माला में कंकड़ ही जड़ता रहा।
वन्दना वीणा-पाणि की पढ़ता रहा।।
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शनिवार, 24 दिसंबर 2016
दोहे "क्रिसमस का त्यौहार" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
रोज-रोज आता नहीं, क्रिसमस का त्यौहार।
खुश हो करके बाँटिए, लोगों को उपहार।।
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दया-धर्म का जगत में, जीवित रहे निवेश।
यीसू सूली पर चढ़ा, देने यह सन्देश।।
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झंझावातों में रहा, जो जीवन परियन्त।
माँ मरियम की कोख से, जन्मा था गुणवन्त।।
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सदा अभावों में पला, लेकिन रहा सपूत।
सारा जग कहता उसे, परमपिता का दूत।।
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मान और अपमान से, जो भी हुआ विरक्त।
दुनिया उसकी ओर ही, हो जाती अनुरक्त।।
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परमपिता के नाम की, महिमा बड़ी अपार।
दीन-दुखी का ईश ही, करता बेड़ा पार।।
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जीवन में मंगल करें, सन्तों के उपदेश।
सर्व धर्म समभाव का, बना रहे परिवेश।।
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शुक्रवार, 23 दिसंबर 2016
समीक्षा-दोहा-कृति 'खिली रूप की धूप' (समीक्षक-मनोज कामदेव)
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