"गिलहरी"
बैठ मजे से मेरी छत पर,दाना-दुनका खाती हो!
उछल-कूद करती रहती हो,
सबके मन को भाती हो!!
मैं मूँगफली दिखलाता हूँ,
कट्टो-कट्टो कहकर तुमको,
जब आवाज लगाता हूँ,
कुट-कुट करती हुई तभी तुम,
जल्दी से आ जाती हो!
उछल-कूद करती रहती हो,
सबके मन को भाती हो!!
नाम गिलहरी, बहुत छरहरी, अंग मर्मरी, रंग सुनहरी, मन में भरी चपलता है, हाथों में सामग्री लेकर, बड़े चाव से खाती हो!
उछल-कूद करती रहती हो,
सबके मन को भाती हो!!
पेड़ों की कोटर में बैठी
धूप गुनगुनी सेंक रही हो, कुछ अपनी ही धुन में ऐंठी टुकर-टुकरकर देख रही हो,
भागो-दौड़ो आलस छोड़ो,
सीख हमें सिखलाती हो!
उछल-कूद करती रहती हो,
सबके मन को भाती हो!!
|
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शनिवार, 17 दिसंबर 2016
बालगीत "गिलहरी" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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पेड़ों की कोटर में बैठी
जवाब देंहटाएंधूप गुनगुनी सेंक रही हो,
कुछ अपनी ही धुन में ऐंठी
टुकर-टुकरकर देख रही हो,
भागो-दौड़ो आलस छोड़ो,
सीख हमें सिखलाती हो!
शिक्षाप्रद बल गीत ,आभार !