मृग के जैसी चाल अब, बनी बैल की चाल।
धीरे-धीरे कट रहे, दिवस-महीने-साल।।
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वैवाहिक जीवन हुआ, अब तैंतालिस वर्ष।
जीवन के संग्राम में, किया बहुत संघर्ष।।
पात्र देख कर शिष्य को, ज्ञानी देता ज्ञान।
श्रम-सेवा परमार्थ से, मिलता जग में मान।।
जो है सरल सुभाव का, वो ही है खुशहाल।
धीरे-धीरे कट रहे, दिवस-महीने-साल।१।
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सजनी घर के काम में, बँटा रही है हाथ।
चैन-अमन से कट रहा, जीवन उसके साथ।।
अपने-अपने क्षेत्र में, करते सब उद्योग।
पुत्र-पौत्र-बहुएँ सभी, करती हैं सहयोग।।
जीवन के संगीत में, मिलते हैं सुर-ताल।
धीरे-धीरे कट रहे, दिवस-महीने-साल।२।
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सरल-तरल है जिन्दगी, बहती सुख की धार।
एक नेक मुझको मिला, सुन्दर सा परिवार।।
होते रहते हैं कभी, आपस में मतभेद।
लेकिन रखते हैं नहीं, घरवाले मनभेद।।
हल कर देता है समय, सारे कठिन सवाल।
धीरे-धीरे कट रहे, दिवस-महीने-साल।३।
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जीवन के पथ में भरे, कदम-कदम पर मोड़।
जिस पथ से मंजिल मिले, कभी न उसको छोड़।।
बैठे गंगा घाट पर, सन्त और शैतान।
देना सदा सुपात्र को, धन में से कुछ दान।।
करके दान कुपात्र को, होता बहुत मलाल।
धीरे-धीरे कट रहे, दिवस-महीने-साल।४।
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रविवार, 4 दिसंबर 2016
दोहागीत "पाँच दिसम्बर-वैवाहिक जीवन के तैंतालीस वर्ष पूर्ण"
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विवाह की 44वीं वर्षगाँठ पर ढेर सारी शुभकामनाएं ।
जवाब देंहटाएंबहुत खूब शादी की सालगिरह पर अपार शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत बधाई एवं हार्दिक शुभकामनायें आप दोनों को...सादर..समीर लाल
जवाब देंहटाएंसरल-तरल है जिन्दगी, बहती सुख की धार।
जवाब देंहटाएंएक नेक मुझको मिला, सुन्दर सा परिवार।।
सुन्दर ..
वैवाहिक जीवन के तैंतालीस वर्ष पूर्ण होने पर बहुत-बहुत हार्दिक बधाई!
जीवन के पथ में भरे, कदम-कदम पर मोड़।
जवाब देंहटाएंजिस पथ से मंजिल मिले, कभी न उसको छोड़।।
बैठे गंगा घाट पर, सन्त और शैतान।
देना सदा सुपात्र को, धन में से कुछ दान।।
करके दान कुपात्र को, होता बहुत मलाल।
धीरे-धीरे कट रहे, दिवस-महीने-साल।४।
बहुत सुंदर पंक्तियाँ,आभार !