खाते माल हराम का, अब भी
ऊदबिलाव।।
--
चाहे धरती पर रहें, कैसे
भी हालात।
होती इनके शीश पर, फूलों
की बरसात।।
--
आजादी के यज्ञ में, प्राण
किये बलिदान।
लेकिन अमर शहीद का, नहीं
मिला सम्मान।।
--
आये कोई भी भले, भारत में
सरकार।
मगर न शासक ने किया, कोई कभी
विचार।।
--
हर-हर हो या हाथ हो, सब
हैं एक समान।
जनता को उल्लू बना, चला
रहे दूकान।।
--
मत पाने तक के लिए, जनता
है भगवान।
फिर तो मनमानी करें, पाँच
साल सुलतान।।
--
लोकतन्त्र के नाम का, जनता
जपती मन्त्र।
राजतन्त्र जैसा लगे, जनता
को जनतन्त्र।।
--
फाँसी खा कर मर रहे, धरती
के भगवान।
लेकिन शासक देश के, सोये
चादर तान।।
|
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मंगलवार, 20 दिसंबर 2016
दोहे "जनता जपती मन्त्र" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक)
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आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 22-12-2016 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2564 में दिया जाएगा
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
सार्थक और सटीक दोहे ... सच को स्पष्ट कहते हुए ...
जवाब देंहटाएंसुन्दर दोहे ।
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