नाम है कंटक हमारा, पालते हैं हम सुमन को।
हम लुटेरों से बचाते जायेंगे, खिलते चमन को।।
साये की मानिन्द रहते साथ में हम फूल के,
गुल हमेशा हैं सुरक्षित गोद में ही शूल के,
ख़ार ही तो बेधते हैं शत्रुओं के तन-बदन को।
हम लुटेरों से बचाते जायेंगे खिलते चमन को।।
पीर के पश्चात सुख देता खुशी का एक कण,
याद रहता है हमेशा मिलन का अनमोल क्षण,
एक चुल्लू जल बहुत होता हमारे आचमन को।
हम लुटेरों से बचाते जायेंगे खिलते चमन को।।
आस्था हो तो असर करता बहुत ताबीज है,
“रूप” तो बस दूर से ही देखने की चीज़ है,
बागबाँ की नज़र से ही देखना इस अंजुमन को।
हम लुटेरों से बचाते जायेंगे खिलते चमन को।
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आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (09-07-2018) को "देखना इस अंजुमन को" (चर्चा अंक-3027) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
राधा तिवारी