निर्धनता के जो रहे, जीवनभर पर्याय।
लमही में पैदा हुए, लेखक धनपत राय।।
आम आदमी की व्यथा, लिखते थे जो नित्य।
प्रेमचन्द ने रच दिया, सरल-तरल साहित्य।।
जीवित छप्पन वर्ष तक, रहे जगत में मात्र।
लेकिन उनके साथ सब, अमर हो गये पात्र।।
फाकेमस्ती में जिया, जीवन को भरपूर।
उपन्यास सम्राट थे, आडम्बर से दूर।।
उपन्यास 'सेवासदन', 'गबन' और 'गोदान'।
हिन्दी-उर्दू
अदब पर, किया बहुत अहसान।।
'रूठीरानी' को लिखा, लिक्खा 'मिलमजदूर'।
प्रेमचन्द मुंशी रहे, सदा मजे से दूर।।
लेखन में जिसका नहीं, झुका कभी किरदार।
उस लमही के लाल को, नमन हजारों बार।।
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मंगलवार, 31 जुलाई 2018
दोहे "मुंशी प्रेमचन्द जयन्ती पर विशेष" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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लाजवाब अद्भुत।
जवाब देंहटाएंदोहो के माध्यम से महान साहित्यकार का सुंदर परिचय।
नमन।
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद जी की १३८ वीं जयंती “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंनमन हज़ारों बार ! बहुत ख़ूब शास्त्री जी. प्रेमचंद के प्रति आपकी काव्यात्मक श्रद्धांजलि में हम सबकी भावनाओं की अभिव्यक्ति है.
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी सामयिक प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंकलम के सिपाही मुंशी प्रेमचंद जी की १३८ वीं जयंती पर सादर नमन !
सरल -तरल के स्थान पर सरल -सरस ज्यादा उपयुक्त होता
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