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मुशकिल से हमको मिला, आजादी
का तन्त्र।
सबको जपना चाहिए,
स्वतन्त्रता का मन्त्र।।
आजादी के साथ में, मत
करना खिलवाड़।
तोड़ न देना एकता, ले मजहब
की आड़।।
मत-मजहब या जाति का, नहीं
किया अभिमान।
आजादी के समर में, हुए
सभी बलिदान।।
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दुनिया में विख्यात है, भारत का जनतन्त्र।
लोकतन्त्र के साथ में, मत
करना षड़यन्त्र।।
मुरझाने मत दीजिए,
प्रजातन्त्र की बेल।
आपस में रखना यहाँ,
भाईचारा-मेल।।
कई दशक के बाद अब, सुधर
रहा परिवेश।
विकसित होता जा रहा,
अपना भारत देश।।
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बिना शस्त्र संधान के,
मिला देश को मान।
आज विदेशों में बढ़ी, निज
भारत की शान।।
उस शासक को नमन है,
जिसने किया कमाल।
दुनिया भर में योग का, दीप
दिया है बाल।।
शासक अपने देश का, करते
ऊँचा नाम।
नतमस्तक होकर करें, सारे
देश सलाम।।
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आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (15-08-2018) को "स्वतन्त्रता का मन्त्र" (चर्चा अंक-3064) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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स्वतन्त्रतादिवस की पूर्वसंध्या पर
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
राधा तिवारी
आजादी को हरगिज न भुलाये हम , बहुत अच्छा सन्देश दिया है आपने कविता के माध्यम से -------
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