लघु कथा-माँ की ममता
रम्भा देवी का एक ही बेटा है अर्जुन, जो
मूम्बई में किसी कम्पनी में वाचमैन की नौकरी करता है। उसका परिवार उसके साथ ही
रहता है। अर्जुन की माता जी पश्चिमी नेपाल के दैजी गाँव में अकेली रहती हैं। वह गठियावात
से पीड़ित हैं। गाँव में उसकी एक बीघा जमीन है जो भारत के नौ बीघा के बराबर होती है। वह अक्सर मेरे अस्पताल में दवाई
लेने आती है। वह गाँव के किसी अन्य व्यक्ति के साथ वो अपने बेटे से मिलने मुम्बई
गयी थी। वहाँ से वो अपने बेटे का मोबाइल नम्बर भी लाई थी।
अर्जुन अपनी माँ को कभी कोई पैसा भी नहीं
भेजता था। इसलिए वह परेशान रहती थी। लेकिन अब उसके पास अर्जुन का फोन नम्बर था
और वो अक्सर मेरे मोबाइल से अपने बेटे का फोन मिलवा लेती थी। रो-रोकर वह अपने
पोते-पोती, बहू-बेटे से बात करती थी। अपने परिजनों को याद करके उसकी आँखों में
आँसू आ जाते थे।
वह बात-चीत में फोन पर कहती थी कि बेटा
तुम्हारी बहुत याद आती है। मगर बेटा अपने काम में मस्त रहता था और माँ की कोई
चिन्ता नहीं करता था। यह माँ का दिल ही है कि बेटा कितना भी निष्ठुर क्यों न हो
जाये मगर माँ कभी निष्ठुर नहीं हो सकती।
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गुरुवार, 22 अगस्त 2019
लघु कथा "माँ की ममता" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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