बीत गया सावन सखे, आया भादौ मास।
जन्मदिवस श्रीकृष्ण का, पर्व बहुत है खास।।
दोपायों से हो रहे, चौपाये भयभीत।
मिल पायेगा फिर कहाँ, दूध-दही नवनीत।।
जब आयेंगे देश में, कृष्णचन्द्र गोपाल।
आशा है गोवंश का, तब सुधरेगा हाल।।
हाथ थाम कर अनुज का, जब चलते बलराम।
धरा और आकाश में, मानो हों घनश्याम।।
जल थल में क्रीड़ा करें, बालक जब नन्दलाल।
नृत्य करें तब गोपियाँ, ग्वाले देते ताल।।
बजती है जब चैन की, बंशी आठों याम।
धन्य हुआ गोपाल से, तब मथुरा का धाम।।
वसुन्धरा में कृष्ण जब, ले लेंगे अवतार।
अपने भारतवर्ष का, होगा तब उद्धार।।
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शनिवार, 24 अगस्त 2019
दोहे "कृष्णचन्द्र गोपाल" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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जवाब देंहटाएंजी नमस्ते,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (25-08-2019) को " मेक इन इंडिया "(चर्चा अंक-3438) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
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अनीता सैनी
बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर भावपूर्ण दोहे ।
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