अभिमानी का एक दिन, होगा चूर गरूर।।
अपना हक लेना नहीं, कहलाता है पाप।
पीओके के राग का, बन्द करो आलाप।।
सारा जग है जानता, सिंहों की हुंकार।
गीदड़-भभकी है नहीं, भारत की ललकार।।
है सिर पर लटकी हुई, दोधारी तलवार।
टुकड़े पाकिस्तान के, देखेगा संसार।।
सारी दुनिया में बना, पाकिस्तान कलंक।
भारत देगा अब मिटा, उग्रवाद-आतंक।।
अपना है करतारपुर, अपना है लाहौर।
पूरा ही कशमीर है, भारत का शिरमौर।।
आज उठाने हैं हमें, वीरों कदम कठोर।
सरसेगी तब देश में, निशदिन सुख की भोर।।
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शनिवार, 31 अगस्त 2019
दोहे "भारत की ललकार" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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अति सुंदर
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (01-09-2019) को " जी डी पी और पी पी पी में कितने पी बस गिने " (चर्चा अंक- 3445) पर भी होगी।
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता सैनी
बहुत खूब
जवाब देंहटाएंवन्दे मातरम्
जवाब देंहटाएंहर दोहे के बाद यही गूंजा मन मस्तिक्ष में
आज उठाने हैं हमें, वीरों कदम कठोर।
जवाब देंहटाएंसरसेगी तब देश में, निशदिन सुख की भोर।।