नहीं कभी जो जानते, क्या होता उपकार।
बदले में अहसान के, वो करते हैं वार।।
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केवल मतलब के लिए, करते आकर बात।
मकसद पूरा जब हुआ, तब भूले औकात।।
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नहीं इशारा समझते, दुनिया में नादान।
ओछी हरकत से कभी, बनते नहीं महान।।
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अपने कहने से नहीं, कोई होता पाक।
सारी दुनिया जानती, पाक बहुत नापाक।।
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खुशहाली को देखकर, रोता रहता ठूँठ।
तिरछी चाल न भूलता, कभी खेल में ऊँट।।
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जम्मू से लद्दाख तक, अब अपनी जागीर।
लेंगे पाकिस्तान से, बाकी भी कशमीर।।
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हुआ न सत्तर साल में, अब तक ऐसा काम।
लेकिन मोदी ने किया, जग में ऊँचा नाम।।
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धरती पर कशमीर की, दिया तिरंगा गाड़।
लिया हमारा पाक ने, कुछ भी नहीं उखाड़।।
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गुरुवार, 8 अगस्त 2019
दोहे "दिया तिरंगा गाड़" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (10-08-2019) को "दिया तिरंगा गाड़" (चर्चा अंक- 3423) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता सैनी
Sundar kavita. Ted, Reddit, Themeforest & Theverge profile
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