जीवन के हर क्षेत्र में, साँठ-गाँठ भरपूर।
अब मयंक की चाँदनी, शीतलता से दूर।।
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सूखा है बरसात में, आती नहीं उमंग।
चौमासे में खो गयी, जाने कहाँ तरंग।।
बदल गया है आदमी, बदल गया किरदार।
खोजो पानीदार को, करो प्रीत-मनुहार।।
तौल रहे सामान को, सब अपने अनुसार।
निर्मल अब बहती नहीं, गंगा जी की धार।।
मन के घोड़े पर हुआ, लालच आज सवार।
मधुमक्खी सा हो गया, लोगों का व्यवहार।।
नवयुग के इंसान में, नहीं रही वो बात।
बता रहा है समय अब, दुनिया को औकात।।
छन्दशास्त्र गायब हुए, है भेड़िया-धसान।
नहीं रहा साहित्य में, उपमा में उपमान।।
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गुरुवार, 29 अगस्त 2019
दोहे "उपमा में उपमान" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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जवाब देंहटाएंजी नमस्ते,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (31-08-2019) को " लिख दो ! कुछ शब्द " (चर्चा अंक- 3444) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता सैनी
मन के घोड़े पर हुआ, लालच आज सवार।
जवाब देंहटाएंमधुमक्खी सा हो गया, का व्यवहार।।
दूसरी पंक्ति के दूसरे भाग में "इंसान" छूट गया है
बहुत सटीक लिखते हैं आज के परिवेश पर आप !
वाह!!बहुत खूब!
जवाब देंहटाएं