हालत जैसे के हैं तैसे!
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गुरुवार, 31 दिसंबर 2020
बुधवार, 30 दिसंबर 2020
गीत "नये वर्ष का अभिनन्दन!" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
नये वर्ष का अभिनन्दन! जीवन बगिया चहके-महके, बनकर कानन का चन्दन! नये वर्ष का अभिनन्दन! -- |
भू-नभ में फहराए पताका, गर्वित गाथाएँ चर्चित हों। दूर सभी हों भव-भय-बाधा, खिलता सुमन सदा हर्षित हों। राष्ट्रयज्ञ में अर्पित होकर, करना माता का वन्दन! नये वर्ष का अभिनन्दन! -- |
मानवता के लिए प्यार हो, अमल-धवल जल की धारा हो। धरती का धानी सिंगार हो, मीत हमारा जग सारा हो। स्वाभिमान से गर्वित होकर, फूलें-फलें हमारे नन्दन! नये वर्ष का अभिनन्दन! -- |
मंगलवार, 29 दिसंबर 2020
गीत "बीत रहा है साल पुराना" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक)
बीत
रहा है साल पुराना, कल की बातें छोड़ो। |
सोमवार, 28 दिसंबर 2020
गीत "महके-चहके घर परिवार" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
कोकिल गायें मधुर तराने, |
रविवार, 27 दिसंबर 2020
दोहे "सुधरेंगे फिर हाल" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
कुछ
घण्टे कुछ दिवस में, बीत जायगा साल।
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शनिवार, 26 दिसंबर 2020
गीत "पड़ने वाले नये साल के हैं कदम" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
पड़ने वाले नये साल के हैं कदम! स्वागतम्! स्वागतम्!! स्वागतम्!!! -- कोई खुशहाल है. कोई बेहाल है, अब तो मेहमान कुछ दिन का ये साल है, ले के आयेगा नव-वर्ष चैनो-अमन! स्वागतम्! स्वागतम्!! स्वागतम्!!! -- रौशनी देगा तब अंशुमाली धवल, ज़र्द चेहरों पे छायेगी लाली नवल, मुस्करायेंगे गुलशन में सारे सुमन! स्वागतम्! स्वागतम्!! स्वागतम्!!! -- धन से मुट्ठी रहेंगी न खाली कभी, अब न फीकी रहेंगी दिवाली कभी. मस्तियाँ साथ लायेगा चंचल पवन! स्वागतम्! स्वागतम्!! स्वागतम्!!! -- |
शुक्रवार, 25 दिसंबर 2020
दोहे "नमन हजारों बार" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
देशभक्ति-दलभक्ति के, संगम थे अभिराम। |
गुरुवार, 24 दिसंबर 2020
गीत "पन्थ अनोखा बतलाया" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
दुखियों की सेवा करने को, यीशू धरती पर आया। निर्धनता में पलकर जग को जीवन दर्शन समझाया।। -- जन-जन को सन्देश दिया, सच्ची बातें स्वीकार करो! छोड़ बुराई के पथ को, अच्छाई अंगीकार करो!! कुदरत के ज़र्रे-ज़र्रे में, रहती है प्रभु की माया। निर्धनता में पलकर जग को जीवन दर्शन समझाया।। -- मज़हब की कच्ची माटी में, कुश्ती और अखाड़ा क्यों? फल देने वाले पेड़ों पर, आरी और कुल्हाड़ा क्यों? क्षमा-सरलता और दया का, पन्थ अनोखा बतलाया। निर्धनता में पलकर जग को जीवन दर्शन समझाया।। -- हत्या-लूटपाट करना, अपराध घिनौना होता है। महिलाओं का कोमल तन-मन, नहीं खिलौना होता है। कभी जुल्म मत ढाना इनपर, ये हम सबकी हैं जाया। निर्धनता में पलकर जग को जीवन दर्शन समझाया।। -- |
बुधवार, 23 दिसंबर 2020
वन्दना "वीणा की झंकार दो" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
-१- |
मंगलवार, 22 दिसंबर 2020
दोहे "सरकारी फरमान" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
रास न आया कृषक को, सरकारी फरमान। |
सोमवार, 21 दिसंबर 2020
गीत "धारा यहाँ विधान की" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
बिगड़
रही है सूरत-सीरत, भारत देश महान की। |
रविवार, 20 दिसंबर 2020
गीत "वातावरण कितना सलोना" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
-- है यहाँ जीवन कठिन, वातावरण कितना सलोना। बाँटता सुख है सभी को, मखमली जैसा बिछौना। -- पेड़-पौधें हैं सजीले, खेत हैं सीढ़ीनुमा, पर्वतों की घाटियों में, पल रही है हरितिमा, प्राणदायक बूटियों से, महकता जंगल का कोना। -- शारदा, गंगो-जमुन का, है यहीं पर स्रोत-उदगम, मन्दिरों-देवालयों की, छटा अद्भुत और अनुपम, किन्तु आकर कुछ दरिन्दे, खेल रचते हैं घिनौना। -- चोटियों पर बर्फ की चादर यहाँ किसने बिछायी, घाटियों में नीर की गागर, छनक-छन-छनछनायी, देख कुदरत का करिश्मा, हो गया इन्सान बौना। -- इन पहाड़ों की सतह में, बस रहे कुछ प्राण भी हैं कंकड़ों और पत्थरों में रम रहे भगवान भी हैं, नाम है पत्थर मगर, पाषाण हैं अनमोल सोना। बाँटता सुख है सभी को, मखमली जैसा बिछौना।। -- |
शनिवार, 19 दिसंबर 2020
बालगीत "शीत बढ़ा, सूरज शर्माया" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
-- शीत बढ़ा, सूरज शर्माया। आसमान में कुहरा छाया।। -- चिड़िया चहकी, मुर्गा बोला, जब हमने दरवाजा खोला, लेकिन घना धुँधलका पाया। आसमान में कुहरा छाया।। -- जाड़ा बहुत सताता तन को, कैसे जाएँ सुबह भ्रमण को, सर्दी ने है रंग जमाया। आसमान में कुहरा छाया।। -- गज़क-रेवड़ी बहुत सुहाती, मूँगफली सबके मन भाती, दादी ने अलाव सुलगाया। आसमान में कुहरा छाया।। गेंहूँ झूम-झूम लहराते, शीतल तुहिन कणों को खाते, हरियाली ने रूप दिखाया। आसमान में कुहरा छाया।। -- |
शुक्रवार, 18 दिसंबर 2020
गीत "श्वाँसों की सरगम की धारा" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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गुरुवार, 17 दिसंबर 2020
गीत "बदन काँपता थर-थर-थर" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
बुधवार, 16 दिसंबर 2020
गीत " ठिठुर रही है सबकी काया" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
-- मैदानों में कुहरा छाया। सितम बहुत सरदी ने ढाया।। सूरज को बादल ने घेरा, शीतलता ने डाला डेरा, ठिठुर रही है सबकी काया। सितम बहुत सरदी ने ढाया।। कलियों पर मौसम के पहरे, बहुत निराश हो रहे भँवरे, गुंजन उनको रास न आया। सितम बहुत सरदी ने ढाया।। -- सरसों के सब बिरुए रोते, गेहूँ अपना धीरज खोते है, हरियाली का हुआ सफाया। सितम बहुत सरदी ने ढाया।। -- बया नीड़ से झाँक रही है, इधर-उधर को ताँक रही है, शीतलता ने हाड़ कँपाया। सितम बहुत सरदी ने ढाया।। बूढ़े-बच्चे काँप रहे हैं, सभी आग को ताप रहे हैं, हिम पर्वशिखरों पर छाया। सितम बहुत सरदी ने ढाया।। -- |
मंगलवार, 15 दिसंबर 2020
दोहे "खेती का कानून" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
-- नभ में सूरज गुम हुआ, हाड़ कँपाता शीत। दाँतों से बजने लगा, किट-किट का संगीत।। -- दिवस हुए छोटे बहुत, लम्बी हैं अब रात। खाने में अब बढ़ गया, भोजन का अनुपात।। -- कोयल और कबूतरी, सेंक रहे हैं धूप। बिना नहाये लग रहा, मैला उनका रूप।। -- अच्छा लगता है बहुत, शीतकाल में घाम। खिली गुनगुनी धूप में, सिक जाता है चाम।। -- छाया है कुहरा सघन, थर-थर काँपे गात। सत्याग्रह से कृषक के, विकट हुए हालात।। -- छोड़ दीजिए कृषक पर, खेती का कानून। नहीं किसानों को रुचा, सरकारी मजमून।। -- खेतीहर-मजदूर हैं, धरती के भगवान। उनकी जायज माँग का, रखना होगा मान।। -- |
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