मैं अपनी मम्मी-पापा के, नयनों का हूँ नन्हा-तारा। मुझको लाकर देते हैं वो, रंग-बिरंगा सा गुब्बारा।। -- मुझे कार में बैठाकर, वो रोज घुमाने जाते हैं। पापा जी मेरी खातिर, कुछ नये खिलौने लाते हैं।। -- मैं जब चलता ठुमक-ठुमक, वो फूले नही समाते हैं। जग के स्वप्न सलोने, उनकी आँखों में छा जाते हैं।। -- ममता की मूरत मम्मी-जी, पापा-जी प्यारे-प्यारे। मेरे दादा-दादी जी भी, हैं सारे जग से न्यारे।। -- सपनों में सबके ही, सुख-संसार समाया रहता है। हँसने-मुस्काने वाला, परिवार समाया रहता है।। -- मुझको पाकर सबने पाली हैं, नूतन अभिलाषाएँ। क्या मैं पूरा कर कर पाऊँगा, उनकी सारी आशाएँ।। -- मुझको दो वरदान प्रभू! मैं सबका ऊँचा नाम करूँ। मानवता के लिए जगत में, अच्छे-अच्छे काम करूँ।। -- |
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शनिवार, 5 दिसंबर 2020
बालकविता "जय विजय-अच्छे-अच्छे काम करूँ" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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बेहतरीन बाल कविता।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर ।
जवाब देंहटाएंआदरणीय शास्त्री जी,
जवाब देंहटाएंसादर अभिवादन 🙏
दोहा सम्राट तो आप हैं ही.... बाल कविताओं के भी सिद्धहस्त हैं आज की यह रचना इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण है। साधुवाद 🙏
सादर,
डॉ. वर्षा सिंह
सुंदर बाल कविता .. इसे पढ़ कर मन बचपन की ओर चल पड़ा।
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर बालगीत।
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंनिश्छल प्यार-दुलार भरा सुन्दर बाल-गीत !
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर बालगीत आदरणीय।
जवाब देंहटाएंअद्वितीय रचना - - बाल गीत शैशव की ओर लिए जाती है - - नमन सह।
जवाब देंहटाएंसुंदर बाल सुलभ रचना।
जवाब देंहटाएं