-- नभ में सूरज गुम हुआ, हाड़ कँपाता शीत। दाँतों से बजने लगा, किट-किट का संगीत।। -- दिवस हुए छोटे बहुत, लम्बी हैं अब रात। खाने में अब बढ़ गया, भोजन का अनुपात।। -- कोयल और कबूतरी, सेंक रहे हैं धूप। बिना नहाये लग रहा, मैला उनका रूप।। -- अच्छा लगता है बहुत, शीतकाल में घाम। खिली गुनगुनी धूप में, सिक जाता है चाम।। -- छाया है कुहरा सघन, थर-थर काँपे गात। सत्याग्रह से कृषक के, विकट हुए हालात।। -- छोड़ दीजिए कृषक पर, खेती का कानून। नहीं किसानों को रुचा, सरकारी मजमून।। -- खेतीहर-मजदूर हैं, धरती के भगवान। उनकी जायज माँग का, रखना होगा मान।। -- |
"उच्चारण" 1996 से समाचारपत्र पंजीयक, भारत सरकार नई-दिल्ली द्वारा पंजीकृत है। यहाँ प्रकाशित किसी भी सामग्री को ब्लॉग स्वामी की अनुमति के बिना किसी भी रूप में प्रयोग करना© कॉपीराइट एक्ट का उलंघन माना जायेगा। मित्रों! आपको जानकर हर्ष होगा कि आप सभी काव्यमनीषियों के लिए छन्दविधा को सीखने और सिखाने के लिए हमने सृजन मंच ऑनलाइन का एक छोटा सा प्रयास किया है। कृपया इस मंच में योगदान करने के लिएRoopchandrashastri@gmail.com पर मेल भेज कर कृतार्थ करें। रूप में आमन्त्रित कर दिया जायेगा। सादर...! और हाँ..एक खुशखबरी और है...आप सबके लिए “आपका ब्लॉग” तैयार है। यहाँ आप अपनी किसी भी विधा की कृति (जैसे- अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कर सकते हैं। बस आपको मुझे मेरे ई-मेल roopchandrashastri@gmail.com पर एक मेल करना होगा। मैं आपको “आपका ब्लॉग” पर लेखक के रूप में आमन्त्रित कर दूँगा। आप मेल स्वीकार कीजिए और अपनी अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कीजिए। |
Linkbar
फ़ॉलोअर
मंगलवार, 15 दिसंबर 2020
दोहे "खेती का कानून" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
लोकप्रिय पोस्ट
-
दोहा और रोला और कुण्डलिया दोहा दोहा , मात्रिक अर्द्धसम छन्द है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) मे...
-
लगभग 24 वर्ष पूर्व मैंने एक स्वागत गीत लिखा था। इसकी लोक-प्रियता का आभास मुझे तब हुआ, जब खटीमा ही नही इसके समीपवर्ती क्षेत्र के विद्यालयों म...
-
नये साल की नयी सुबह में, कोयल आयी है घर में। कुहू-कुहू गाने वालों के, चीत्कार पसरा सुर में।। निर्लज-हठी, कुटिल-कौओं ने,...
-
समास दो अथवा दो से अधिक शब्दों से मिलकर बने हुए नए सार्थक शब्द को कहा जाता है। दूसरे शब्दों में यह भी कह सकते हैं कि &qu...
-
आज मेरे छोटे से शहर में एक बड़े नेता जी पधार रहे हैं। उनके चमचे जोर-शोर से प्रचार करने में जुटे हैं। रिक्शों व जीपों में लाउडस्पीकरों से उद्घ...
-
इन्साफ की डगर पर , नेता नही चलेंगे। होगा जहाँ मुनाफा , उस ओर जा मिलेंगे।। दिल में घुसा हुआ है , दल-दल दलों का जमघट। ...
-
आसमान में उमड़-घुमड़ कर छाये बादल। श्वेत -श्याम से नजर आ रहे मेघों के दल। कही छाँव है कहीं घूप है, इन्द्रधनुष कितना अनूप है, मनभावन ...
-
"चौपाई लिखिए" बहुत समय से चौपाई के विषय में कुछ लिखने की सोच रहा था! आज प्रस्तुत है मेरा यह छोटा सा आलेख। यहाँ ...
-
मित्रों! आइए प्रत्यय और उपसर्ग के बारे में कुछ जानें। प्रत्यय= प्रति (साथ में पर बाद में)+ अय (चलनेवाला) शब्द का अर्थ है , पीछे चलन...
-
“ हिन्दी में रेफ लगाने की विधि ” अक्सर देखा जाता है कि अधिकांश व्यक्ति आधा "र" का प्रयोग करने में बहुत त्र...
सुन्दर सृजन
जवाब देंहटाएंसही बात कही सर! सरकार को किसानों की माँग पर गौर करके इन कानूनों को तुरंत वापस लेना चाहिए।
जवाब देंहटाएंखेतीहर-मजदूर हैं, धरती के भगवान।
जवाब देंहटाएंउनकी जायज माँग का, रखना होगा मान।।
बिल्कुल सही।
बहुत सुन्दर सृजन ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर और प्रासंगिक दोहे।
जवाब देंहटाएंअत्यंत समसामयिक दोहे...
जवाब देंहटाएंनमन आपको आदरणीय 🍁🙏🍁
नमन मान्यवर बहुत सुन्दर रचना।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंप्रासंगिक समसामयिक दोहे।
सादर।
नभ में सूरज गुम हुआ, हाड़ कँपाता शीत।
जवाब देंहटाएंदाँतों से बजने लगा, किट-किट का संगीत।।
सुंदर दोहे...शीतकाल और आज के समय के ज्वलंत मुद्दों को अच्छी तरीके से दर्शाते हुए....