सहमी कलियाँ आज चमन में।
कैसे फूल खिलें उपवन में?
द्वार कामना से संचित है,
हृदय भावना से वंचित है,
प्यार वासना से रंजित है,
सन्नाटा पसरा गुलशन में।
कैसे फूल खिलें उपवन में?
सूरज शीतलता बरसाता,
चन्दा अगन लगाता जाता,
पागल षटपद शोर मचाता,
धूमिल तारे नीलगगन में।
कैसे फूल खिलें उपवन में?
युग केवल अभिलाषा का है,
बिगड़ गया सुर भाषा का है,
जीवन नाम निराशा का है,
कोयल रोती है कानन में।
कैसे फूल खिलें उपवन में?
अंग और प्रत्यंग वही हैं,
पहले जैसे रंग नहीं हैं,
जीने के वो ढंग नहीं हैं,
काँटे उलझे हैं दामन में।
कैसे फूल खिलें उपवन में?
मौसम भी अनुरूप नहीं है,
चमकदार अब धूप नहीं है,
तेजस्वी अब “रूप” नहीं है,
पात झर गये मस्त पवन में।
कैसे फूल खिलें उपवन में?
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बुधवार, 19 फ़रवरी 2014
"कैसे फूल खिलें उपवन में" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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बहुत ही बढ़िया सर!
जवाब देंहटाएंसादर
उपवन को सजाना होगा..
जवाब देंहटाएंवाह बहुत सुंदर !
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर सार्थक भावपूर्ण रचना शास्त्री जी ! अति उत्तम !
जवाब देंहटाएंवाह-वाह!
जवाब देंहटाएंकई बार पढ़ गया। बड़ा ही सरल प्रवाह है ..!
बहुत ही सुंदर रचना.
जवाब देंहटाएंरामराम.
बढ़िया प्रस्तुति- -
जवाब देंहटाएंआभार आपका-
बहुत सुंदर रचना.
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना.
जवाब देंहटाएं