वातावरण
कितना विषैला हो गया है।
मधुर केला
भी कसैला हो गया है।।
लाज
कैसे अब बचायेगी की अहिंसा,
पल रही चारों
तरफ है आज हिंसा
सत्य
कहने में झमेला हो गया है
मधुर केला
भी कसैला हो गया है।।
अब
किताबों में सजे हैं ढाई आखर,
सिर्फ
कहने को बचे हैं नाम के घर,
आदमी
कितना अकेला हो गया है।
मधुर केला
भी कसैला हो गया है।।
इंसान
के अब दाँत पैने हो गये हैं.
मनुज के
सिद्धान्त सारे खो गये हैं,
बस्तियों
का ढंग बनैला हो गया है।
मधुर केला
भी कसैला हो गया है।।
प्रीत
की अब आग ठण्डी हो गयी है,
पीढ़ियों
की सोच गन्दी हो गयी है,
सभ्यता
का रूप मैला हो गया है।
मधुर केला
भी कसैला हो गया है।।
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सोमवार, 24 फ़रवरी 2014
"सभ्यता का रूप मैला हो गया है" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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सच जिंदगी में अब मिठास नहीं रहा ,सब कसेला हो गया है
जवाब देंहटाएंnew postकिस्मत कहे या ........
New**अनुभूति : शब्द और ईश्वर !!!
काश, विकार सुधर जायें।
जवाब देंहटाएंसच यही है । बहुत सुंदर !
जवाब देंहटाएंदुखद सत्य है
जवाब देंहटाएंकटु सत्य है |
जवाब देंहटाएंबढ़िया प्रस्तुति गुरुवर-
जवाब देंहटाएंआभार
सुन्दर अप्रतिम सार्थक अभिव्यक्ति सांगीतिक ताल लिए। हमारे वक्त की विडंबना को स्वर देती प्रस्तुति।
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