♥ दोहागीत ♥
बात-बात पर हो
रही, आपस में तकरार।
भाई-भाई में नहीं,
पहले जैसा प्यार।।
(१)
बेकारी में भा रहा,
सबको आज विदेश।
खुदगर्ज़ी में खो
गये, ऋषियों के सन्देश।।
कर्णधार में है
नहीं, बाकी बचा जमीर।
भारत माँ के जिगर
में, घोंप रहा शमशीर।।
आज देश में सब
जगह, फैला भ्रष्टाचार।
भाई-भाई में नहीं,
पहले जैसा प्यार।।
(२)
कुनबेदारी ने लिया,
लोकतन्त्र का “रूप”।
सबके हिस्से में
नहीं, सुखद गुनगुनी धूप।।
दल-दल के तो मूल
में, फैला मैला पंक।
अब कैसे राजा हुए,
कल तक थे जो रंक।।
कैसे भी हो आय हो,
मन में यही विचार।
इसीलिए मैली हुई, गंगा
जी की धार।।
(३)
ओढ़ लबादा हंस का,
घूम रहे हैं बाज।
लूट रहे हैं चमन
को, माली ही खुद आज।।
खूनी पंजा देखकर, सहमे
हुए कपोत।
सूरज अपने को
कहें, ये छोटे खद्योत।।
मन को अब भाती
नहीं, वीणा की झंकार।
इसीलिए मैली हुई, गंगा
जी की धार।।
(४)
आपाधापी की यहाँ, भड़क
रही है आग।
पुत्रों के मन में
नहीं, माता का अनुराग।।
बड़ी मछलियाँ खा
रहीं, छोटी-छोटी मीन।
देशनियन्ता पर
रहा, अब कुछ नहीं यकीन।।
छल-बल की पतवार
से, कैसे होंगे पार,
इसीलिए मैली हुई, गंगा
जी की धार।।
|
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शुक्रवार, 21 फ़रवरी 2014
"दोहागीत-लोकतन्त्र का रूप” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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"कैसे भी आय हो, मन में यही विचार"
जवाब देंहटाएंसत्य और सार्थक
अपनों को अपनों पर विश्वास दिलाती पंक्तियाँ।
जवाब देंहटाएंकुरूप सच्चाई बयान करते सुन्दर दोहे ...
जवाब देंहटाएं~सादर
आपके दोहे अच्छे लगते हैं
जवाब देंहटाएंदेखिये मेरी एक रिसर्च है शायद आपके काम आ जाए -------
मृत्यु को जीतने की बात चल रही है। आदमी के क्लोन बनाये जा रहे हैं। वही मसल हुई कि चिराग तले अँधेरा। अरे अमरत्व् का वरदान तो हमारे इसी शरीर में है। बस थोड़ा सा प्राकृतिक होने की जरूरत है। न न चिंता मत कीजिये ,मैं आपको अध्यात्म का पाठ नहीं पढ़ाने जा रही बस इतना बताना चाहती हूँ कि जड़ी बूटियों में वह ताकत है जो हमें लंबा जीवन प्रदान कर सकती हैं। आयुर्वेद में कई कल्प रसायन का वर्णन है ,आवश्यकता है बस उन मन्त्रों में छुपी पहेलियों को सुलझा लेने की।
पुराने समय में लगातार राजवैद्य लोग इसी विधा पर काम करते रहते थे ,तब मनुष्य जड़ी बूटियों का सेवन इसलिए करते थे ताकि वो लम्बे समय तक स्वस्थ जीवन जी सकें। आज मनुष्य ४० वर्ष का होते होते ताकत खोने लगता है। तन - मन दोनों थकान का अनुभव करते हैं। ५०-५५ होते होते तो बुढ़ापे का लेबल लग जाता है। जबकि १०० वर्ष तो आम मनुष्यों की आयु कही गयी है। राजा लोग तो १५०-२०० साल तक युद्ध करते हुए भी आराम से जी लेते थे। क्योंकि उनके लिए वैद्य रसायनो और कल्पों का निर्माण करते रहते थे। जो उनकी जीवनी शक्ति को यथावत रखने में मददगार होते थे।
मैंने फिलहाल दो रसायन बना लिए हैं जो आपके शरीर को निरोग रखते हुए उसकी जीवनी शक्ति बढ़ाएंगे -
१- हल्दी रसायन
२- निर्गुण्डी रसायन
इनको तैयार करने की विधि मैं यहाँ नहीं लिख सकती क्योंकि इसमें मेहनत के साथ एकाग्रता और मन्त्रों का भी योगदान है।
लेकिन आपको यह जरुर बता देना चाहती हूँ कि आप बुढ़ापे की सारी परेशानियों पर विजय पाकर स्वस्थ और लंबा जीवन जी सकते हैं।
आजकल बाज़ार में मिलने वाले सौ रुपये किलो के च्यवनप्राश से तो इतनी शक्ति भी नहीं बढ़ पाती कि सर्दी जुकाम से ही आपकी रक्षा हो सके। जीवनी शक्ति तो बहुत दूर की बात है।
बहुत सशक्त रचना.
जवाब देंहटाएंरामराम.
एक और सुंदर रचना हमेशा की तरह !
जवाब देंहटाएंसुंदर दोहे-छंद...
जवाब देंहटाएंदोहागीत-लोकतन्त्र का रूप”
जवाब देंहटाएंबात-बात पर हो रही, आपस में तकरार।
भाई-भाई में नहीं, पहले जैसा प्यार।।
(१)
बेकारी में भा रहा, सबको आज विदेश।
खुदगर्ज़ी में खो गये, ऋषियों के सन्देश।।
कर्णधार में है नहीं, बाकी बचा जमीर।
भारत माँ के जिगर में, घोंप रहा शमशीर।।
आज देश में सब जगह, फैला भ्रष्टाचार।
भाई-भाई में नहीं, पहले जैसा प्यार...
उच्चारण
सटीक कटाक्ष हमारे राजनीति के जोकरों पर।