बुद्धिमान बुद्धू बनें, मूर्ख दिवस है आज।
देवदत्त प्रसून भी, नाच रहे बिन साज।।
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मैंने गा दिया है।
मगर मैंने इसे मूर्खता दिवस का उपहार समझकर
उनको कह दिया
"भतीजी! आज मैं..... बनने वाला नहीं हूँ!"
कल-कल, छल-छल करती गंगा,
मस्त चाल से बहती है।
श्वाँसों की सरगम की धारा,
यही कहानी कहती है।।
हो जाता निष्प्राण कलेवर,
जब धड़कन थम जाती हैं।
सड़ जाता जलधाम सरोवर,
जब लहरें थक जाती हैं।
चरैवेति के बीज मन्त्र को,
पुस्तक-पोथी कहती है।
श्वाँसों की सरगम की धारा,
यही कहानी कहती है।।
हरे वृक्ष की शाखाएँ ही,
झूम-झूम लहरातीं हैं।
सूखी हुई डालियों से तो,
हवा नहीं आ पाती है।
जो हिलती-डुलती रहती है,
वही थपेड़े सहती है।
श्वाँसों की सरगम की धारा,
यही कहानी कहती है।।
काम अधिक हैं थोड़ा जीवन,
झंझावात बहुत फैले हैं।
नहीं हमेशा खिलता गुलशन,
रोज नहीं लगते मेले हैं।
सुख-दुख की आवाजाही तो,
सदा संग में रहती है।
श्वाँसों की सरगम की धारा,
यही कहानी कहती है।।
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