गुज़र
गयी है अब तो, शिवशंकर जी की भी रात।
फागुन में ओले-पानी की, होती है बरसात।।
बदली
छायी नील गगन में, सर्दी फिर से आयी,
स्वाटर-कोट
निकाले फिर से, छूटी नहीं रजायी,
गेहूँ-सरसों
की फसलों के, बिगड़ गये हालात।
आज
किसानों के चेहरों पर, छायी बहुत निराशा,
धूमिल
हुई उमंगों वाली, होली की अभिलाषा,
पर्वत
पर बसन्त में, होता जाता है हिमपात।
मन मैला
कलियुग में सबका, मैला है मधुमास,
इसीलिए
तो मौसम भी, करता खुलकर उपहास,
इंसानों
को बतला दी, उनकी असली औकात।
कर्म-धुरन्धर,
धर्म-धुरन्धर, लगते आज खिलौने,
धरती के
भगवान, आज लगते है कितने बौने,
अवश-विवश-लाचार,
भला देंगे कैसे सौगात।
|
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शनिवार, 1 मार्च 2014
"गीत-बिगड़ गये हालात" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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मौसम ने उत्पात मचाया
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर !
जवाब देंहटाएंवाह सारे बंद खूबसूरत लयात्मक अर्थ छटा लिए हमारे वक्त की झरबेरियां लिए।
जवाब देंहटाएंआज किसानों के चेहरों पर, छायी बहुत निराशा,
धूमिल हुई उमंगों वाली, होली की अभिलाषा,
पर्वत पर बसन्त में, होता जाता है हिमपात।
मन मैला कलियुग में सबका, मैला है मधुमास,
इसीलिए तो मौसम भी, करता खुलकर उपहास,
इंसानों को बतला दी, उनकी असली औकात।
कर्म-धुरन्धर, धर्म-धुरन्धर, लगते आज खिलौने,
धरती के भगवान, आज लगते है कितने बौने,
अवश-विवश-लाचार, भला देंगे कैसे सौगात।
सच कहा मौसम के तेवर बदले बदले हैं इस बार तो ....बहुत सुन्दर प्रस्तुति वाह ...
जवाब देंहटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएं