मैदानों में कुहरा छाया।
सितम बहुत सरदी ने ढाया।।
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सूरज को बादल ने घेरा,
शीतलता ने डाला डेरा,
ठिठुर रही है सबकी काया।
सितम बहुत सरदी ने ढाया।।
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कलियों पर मौसम के पहरे,
बहुत निराश हो रहे भँवरे,
गुंजन उनको रास न आया।
सितम बहुत सरदी ने ढाया।।
सरसों के सब बिरुए रोते,
गेहूँ अपना धीरज खोते है,
हरियाली का हुआ सफाया।
सितम बहुत सरदी ने ढाया।।
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बया नीड़ से झाँक रही है,
इधर-उधर को ताँक रही है,
शीतलता ने हाड़ कँपाया।
सितम बहुत सरदी ने ढाया।।
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बूढ़े-बच्चे काँप रहे हैं,
सभी आग को ताप रहे हैं,
हिम पर्वशिखरों पर छाया।
सितम बहुत सरदी ने ढाया।।
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शुक्रवार, 30 दिसंबर 2016
गीत "शीतलता ने डाला डेरा" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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सुन्दर गीत ।
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