पतझड़ के मौसम में,
सुन्दर सुमन कहाँ से लाऊँ मैं?
वीराने मरुथल में,
कैसे उपवन को चहकाऊँ मैं?
बीज वही हैं, वही धरा है,
ताल-मेल अनुबन्ध नही,
हर बिरुअे पर
धान
लदे हैं,
लेकिन उनमें गन्ध नही,
खाद रसायन वाले देकर,
महक कहाँ से पाऊँ मैं?
वीराने मरुथल में,
कैसे उपवन को चहकाऊँ मैं?
उड़ा ले गई पश्चिम वाली,
आँधी सब लज्जा-आभूषण,
गाँवों के अंचल में उभरा,
नगरों का चारित्रिक दूषण,
पककर हुए कठोर पात्र अब,
क्या आकार बनाऊँ मैं?
वीराने मरुथल में,
कैसे उपवन को चहकाऊँ मैं?
गुरुओं से भयभीत छात्र, अब नहीं दिखाई देते हैं, शिष्यों से अध्यापक अब तो, डरे-डरे से रहते हैं, संकर नस्लों को अब कैसे, गीता ज्ञान कराऊँ मैं? वीराने मरुथल में, कैसे उपवन को चहकाऊँ मैं?
पतझड़ के मौसम में,
सुन्दर सुमन कहाँ से लाऊँ मैं? वीराने मरुथल में, कैसे उपवन को चहकाऊँ मैं?
--
|
| "उच्चारण" 1996 से समाचारपत्र पंजीयक, भारत सरकार नई-दिल्ली द्वारा पंजीकृत है। यहाँ प्रकाशित किसी भी सामग्री को ब्लॉग स्वामी की अनुमति के बिना किसी भी रूप में प्रयोग करना© कॉपीराइट एक्ट का उलंघन माना जायेगा। मित्रों! आपको जानकर हर्ष होगा कि आप सभी काव्यमनीषियों के लिए छन्दविधा को सीखने और सिखाने के लिए हमने सृजन मंच ऑनलाइन का एक छोटा सा प्रयास किया है। कृपया इस मंच में योगदान करने के लिएRoopchandrashastri@gmail.com पर मेल भेज कर कृतार्थ करें। रूप में आमन्त्रित कर दिया जायेगा। सादर...! और हाँ..एक खुशखबरी और है...आप सबके लिए “आपका ब्लॉग” तैयार है। यहाँ आप अपनी किसी भी विधा की कृति (जैसे- अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कर सकते हैं। बस आपको मुझे मेरे ई-मेल roopchandrashastri@gmail.com पर एक मेल करना होगा। मैं आपको “आपका ब्लॉग” पर लेखक के रूप में आमन्त्रित कर दूँगा। आप मेल स्वीकार कीजिए और अपनी अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कीजिए। |
Linkbar
फ़ॉलोअर
गुरुवार, 16 अप्रैल 2020
गीत "कैसे उपवन को चहकाऊँ मैं" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
लोकप्रिय पोस्ट
-
लगभग 24 वर्ष पूर्व मैंने एक स्वागत गीत लिखा था। इसकी लोक-प्रियता का आभास मुझे तब हुआ, जब खटीमा ही नही इसके समीपवर्ती क्षेत्र के विद्यालयों म...
-
दोहा और रोला और कुण्डलिया दोहा दोहा , मात्रिक अर्द्धसम छन्द है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) मे...
-
नये साल की नयी सुबह में, कोयल आयी है घर में। कुहू-कुहू गाने वालों के, चीत्कार पसरा सुर में।। निर्लज-हठी, कुटिल-कौओं ने,...
-
समास दो अथवा दो से अधिक शब्दों से मिलकर बने हुए नए सार्थक शब्द को कहा जाता है। दूसरे शब्दों में यह भी कह सकते हैं कि ...
-
आज मेरे छोटे से शहर में एक बड़े नेता जी पधार रहे हैं। उनके चमचे जोर-शोर से प्रचार करने में जुटे हैं। रिक्शों व जीपों में लाउडस्पीकरों से उद्घ...
-
इन्साफ की डगर पर , नेता नही चलेंगे। होगा जहाँ मुनाफा , उस ओर जा मिलेंगे।। दिल में घुसा हुआ है , दल-दल दलों का जमघट। ...
-
आसमान में उमड़-घुमड़ कर छाये बादल। श्वेत -श्याम से नजर आ रहे मेघों के दल। कही छाँव है कहीं घूप है, इन्द्रधनुष कितना अनूप है, मनभावन ...
-
"चौपाई लिखिए" बहुत समय से चौपाई के विषय में कुछ लिखने की सोच रहा था! आज प्रस्तुत है मेरा यह छोटा सा आलेख। यहाँ ...
-
मित्रों! आइए प्रत्यय और उपसर्ग के बारे में कुछ जानें। प्रत्यय= प्रति (साथ में पर बाद में)+ अय (चलनेवाला) शब्द का अर्थ है , पीछे चलन...
-
“ हिन्दी में रेफ लगाने की विधि ” अक्सर देखा जाता है कि अधिकांश व्यक्ति आधा "र" का प्रयोग करने में बहुत त्र...




बहुत सुंदर रचना।
जवाब देंहटाएंसब मिल कर सर्वशक्तिमान से इस संकट से जल्द छुटकारा दिलाने की प्रार्थना करें !
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना
जवाब देंहटाएंजाने कैसी मरीचिका है जो आज के इंसान को भटका रही है -कहाँ जा कर इसका अंत होगा ,यह भी पता नहीं.
जवाब देंहटाएंअति सुंदर सृजन सर ,सादर नमस्कार आपको
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंसादर
बहुत बहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंसार्थक वैचारिक सृजन।