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गुरुवार, 12 मार्च 2009
ये गद्दार मेरा, वतन बेंच देंगे। (डॉ0 रूपचन्द्र शास्त्री मयंक)
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बहुत अच्छी रचना है. बधाई है आपको इसके लिए..
जवाब देंहटाएंअहद-ए-कुहन हिन्द का है, वतन का ये नक्श-ए-कुहन बेच देंगे।
लगा हैं रोग इन्हें दौलत का ऐसा, बहन-बेटियों के ये तन बेच देंगे।
ये काँटे हैं गोदी में गुल पालते हैं, लुटेरों को ये गुल-बदन बेच देंगे।
हो इनके अगर वश में वारिस जहाँ का, ये उसके हुनर और फन बेच देंगे।
सch कहा है आपने ... अभिवादन
aapne to desh ka aur ek deshbhakt ke jazbe ka sajeev chitran kar diya...........aaj ke sandarbh mein bilkul satya.
जवाब देंहटाएंयथार्थपरक हैं पंक्तियाँ आपकी.
जवाब देंहटाएंयदि हिन्दुस्तान से गद्दार नेताओं का
जवाब देंहटाएंसफाया हो जाये तो भारत फिर से
जगद्गुरू की पदवी पा सकता है।
शुक्रिया।
अच्छी देश भक्ति की रचना के लिए,
जवाब देंहटाएंबधायी।
देशभक्ति की सुन्दर रचना है।
जवाब देंहटाएंशुभकामनाएँ।
शास्त्री जी !
जवाब देंहटाएंमझे आपकी ये लाइने
बहुत पसन्द आयीं।
जुलम-जोर शायर पे हो गर्चे इनका,
ये उसके भी शेर-औ-सुखन बेच देंगे।
ये गद्दार मेरा वतन बेच देंगे।
मुबारकवाद।
बहुत दिनों के बाद ब्लागजगत में
जवाब देंहटाएंएक अच्छी नज्म पढ़वाने के लिए,
बधाई।
मयंक जी।
जवाब देंहटाएंआप हिन्दी के साथ-साथ उर्दू
भी अच्छा लिखते हैं।
... अभिवादन
मैं आपके जज्बात का कायल हूँ।
जवाब देंहटाएंआप बहुत अच्छा लिखते हैं।
आपको होली की शुभकामनाएँ।
अच्छी रचना है।
जवाब देंहटाएंबधायी।