(श्री देवदत्त ‘प्रसून’ मेरे बहुत पुराने मित्र हैं। कविताएँ लिखना और देश के कोने-कोने की यात्राएँ करना इनकी आदत है। वर्तमान में ये सरकारी अध्यापक के पद से अवकाशप्राप्त कर चुकें हैं, बहुत जल्दी ही ये ब्लाग-जगत पर भी आने वाले हैं। इनकी एक यथार्थवादी गजल को प्रकाशित कर रहा हूँ-
(डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)

दौलत से कहीं कोई अमीर होता है,
अमीर वो है जिसका कोई जमीर होता है।
लोहा तो लोहा है, चाहे जो बना लो,
लोहा जो पिट जाये, शमशीर होता है।
नस-नस में आग भर देता, चुभ जाये तो,
ततैया-डंक बहुत ही हकीर होता है।
जीना हराम कर दे, छीन ले दिल का चैन,
कोई काँटा जब बगलगीर होता है।
भलाई करे और खुद का पता तक न दे,
बस वही तो सच्चा, दानवीर होता है।
रावण की लंका जला दे जो ‘प्रसून’,
दिखने में छोटा सा महावीर होता है।
अमीर वो है जिसका कोई जमीर होता हैं. एक यथार्थवादी बढ़िया गजल है . धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंअमीर वो है जिसका कोई जमीर होता हैं. एक यथार्थवादी बढ़िया गजल है . धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंआदरणीय शास्त्री जी!
जवाब देंहटाएंमुझे यह रचना बहुत पसन्द है।
आपने मेरी रचना प्रकाशित की। धन्यवाद।
आप बधाई के पात्र हैं।
SHER ACHHE HAIN,
जवाब देंहटाएंBHAV ACHHE HAIN,
LEKIN GAZAL MEN MATRAON
KA SANTULAN THIK NAHIN HAI.
प्रसून जी!
जवाब देंहटाएंआप बनबसा से क्या गये,
आपने तो कवि-गोष्ठियों तक में
आना बन्द कर दिया।
आपकी यह रचना सुन्दर है।
कई बार आपके मुख से सुनी है।
आपको ब्लाग पर लाने के लिए
शास्त्री जी का आभारी हूँ।
बहुत लाजवाब रचना. शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंरामराम.
बहुत खुबसूरत गज़ल है ....आप दोनों को बहुत-बहुत बधाई...
जवाब देंहटाएंआपकी ये पंक्तियाँ बहुत पसंद आयीं .....
जवाब देंहटाएंभलाई करे और खुद का पता तक ना दे
बस वही तो सच्चा दानवीर होता है
शास्त्रीजी,वर्श्प्रतिपदाकी आपको वधाई,पुनःआज एक रचना ब्लॉग में दाल रहा हूँ
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