नौ माह और दस दिन में पूरी हो गयीं हैं,
आज 400 पोस्ट !
जीवन के कवि सम्मेलन में, गाना तो मजबूरी है।
जाने कितने स्वप्न संजोए,
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अन्धे कुएँ में पैंठकर, ऐसे न तुम ऐंठा करो, झील-तालाबों की दुनिया और है। बन्द कमरों में न तुम, हर-वक्त यूँ बैठा करो, बाग की ताजा फिजाँ कुछ और है। स्वर्ण-पिंजड़े में कभी शुक को सुकूँ मिलता नही, सैर करने का मज़ा कुछ और है। जुल्म से और जोर से अपना नहीं बनता कोई प्यार करने की रज़ा कुछ और है। गाँव में रहकर रिवाजों-रस्म को मत तोड़ना, प्रीत की होती सज़ा कुछ और है। (चित्र गूगल सर्च से साभार) |
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!! शुभ-दीपावली !! रोशनी का पर्व है, दीपक जलायें। नीड़ को नव-ज्योतियों से जगमगायें।। बातियाँ नन्हें दियों की कह रहीं, इसलिए हम वेदना को सह रहीं, तम मिटाकर, हम उजाले को दिखायें। नीड़ को नव-ज्योतियों से जगमगायें।। डूबते को एक तृण का है सहारा, जीवनों को अन्न के कण ने उबारा, धरा में धन-धान्य को जम कर उगायें। नीड़ को नव-ज्योतियों से जगमगायें।। जेब में ज़र है नही तो क्या दिवाली, मालखाना माल बिन होता है खाली, किस तरह दावा उदर की वो बुझायें। नीड़ को नव-ज्योतियों से जगमगायें।। आज सब मिल-बाँटकर खाना मिठाई, दीप घर-घर में जलाना आज भाई, रोज सब घर रोशनी में झिलमिलायें। नीड़ को नव-ज्योतियों से जगमगायें।। |
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!! शुभ-दीपावली !! दीपकों की रोशनी सबके दिलों को भा गयी है।। जगमगाते खूबसूरत लग रहे नन्हें दिये, लग रहा जैसे सितारे हों धरा पर आ गये, झोंपड़ी महलों के जैसी मुस्कराहट पा गयी है। दीपकों की रोशनी सबके दिलों को भा गयी है।। भवन की दीवार को बेनूर बारिश ने करा था, गाँव के कच्चे घरों का नूर भी इसने हरा था, रंग-लेपन से सभी में अब सजावट छा गयी है। दीपकों की रोशनी सबके दिलों को भा गयी है।। छँट गया सारा अन्धेरा पास और परिवेश का, किन्तु भीतरघात से बदहाल भारत देश का, प्यार जैसे शब्द को भी तो दिखावट खा गयी है। दीपकों की रोशनी सबके दिलों को भा गयी है।। |
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दो अक्टूबर के दिन जन्मा भारत भाग्य विधाता। इसी दिवस से पण्डित लालबहादुर का है नाता।। धन्य हो गई भारत की धरती इन वीर सपूतों से। मस्तक ऊँचा हुआ देश का अमन-शान्ति के दूतों से।। दो अक्टूबर के दिन उपवन जी भर करके मुस्काया। गांधी जी के बाद बहादुर लाल चमन में आया।। जय-जवान और जय किसान का नारा लगा दिया था। दुष्ट पाक की सेना को सीमा से भगा दिया था।। कारयरता का समझौता तुमको था रास न आया। ये गहरा आघात हृदय को सहन नही हो पाया।। सीखा नही कभी था तुमने, घुट-घुट करके जीना। सबसे प्यारा लाल हमारा, ताशकन्द ने छीना।। |
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