अच्छा तो हो सकता हूँ,
पर बहुत बुरा नही हो सकता।।
मैं दरख़्त का पीला पत्रक,
मद्धम सुर में गाता हूँ।
भोजन का अम्बार लगा है,
फिर भी मैं नही खाता हूँ।।
सूखा तो हो सकता हूँ,
पर पुनः हरा नही हो सकता।।
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हर शब्द बहुत ही गहराई लिये हुये एक भावमय प्रस्तुति जिसके लिये आपका आभार ।
जवाब देंहटाएंसुन्दर शास्त्री जी , अति सुन्दर ......
जवाब देंहटाएंआप से मै कब से पुछ रहा हु इतनी कविता का राज क्या है? :)
waah waah.......bahut sundar rachna padhwayi...........dhanyawaad.
जवाब देंहटाएंसुंदर कविता के लिये धन्यवाद
जवाब देंहटाएंसूखा तो हो सकता हूँ,
जवाब देंहटाएंपर पुनः हरा नही हो सकता।।
बडी ही सहजता से कितनी अच्छी बाते कह जाते है आप ........और गहरी भी!
बहुत सुंदर रचना.
जवाब देंहटाएंरामराम.
बहुत गहरी बात कह दी आज !
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना!
कितनी सुंदर बात कह डाली आपने कविता के माध्यम से ..एक संदेश देती हुई सुंदर कविता..बधाई शास्त्री जी!!
जवाब देंहटाएंशास्त्रीजी,
जवाब देंहटाएंअभी से 'पीला पत्रक' न कहिये, जो इतना जीवंत है, वह पीला पत्रक कैसे हो सकता है ?
'दरख़्त का पीला पत्रक,
मद्धम सुर में गाता हूँ।'
मद्धम सुर में गाइए, लेकिन 'बहुत बुरे' तो क्या, बिलकुल बुरे नहीं हो सकते ! सच बोलने का साहस भी कितनों के पास होता है ?
सादर--आ.
वाह बहुत ही गहरे भाव के साथ आपने शब्दों में पिरोया है! शानदार रचना!
जवाब देंहटाएंbahut hi gahre bhaav hain .......
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