पूरब से जो उगता है और पश्चिम में छिप जाता है।
यह प्रकाश का पुंज हमारा सूरज कहलाता है।।
रुकता नही कभी भी चलता रहता सदा नियम से,
दुनिया को नियमित होने का पाठ पढ़ा जाता है।
यह प्रकाश का पुंज हमारा सूरज कहलाता है।।
सदा हितैषी रहने की शिक्षा हमको दे जाता है।
यह प्रकाश का पुंज हमारा सूरज कहलाता है।।
भानु रात और दिन का हमको भेद बताता है।
यह प्रकाश का पुंज हमारा सूरज कहलाता है।।
दूर क्षितिज में रहकर तुम सबको जीवन देते हो,
भुवन-भास्कर तुमको सब जग शीश नवाता है।
यह प्रकाश का पुंज हमारा सूरज कहलाता है।।
सूर्यदेव अपनी प्रशंसा से मुग्ध हो कर हर शब्द को रोशन कर रहे हैं बहुत सुन्दर कविता है बधाई
जवाब देंहटाएंसूर्यदेव अपनी प्रशंसा से मुग्ध हो कर हर शब्द को रोशन कर रहे हैं बहुत सुन्दर कविता है बधाई
जवाब देंहटाएंसूर्यदेव अपनी प्रशंसा से मुग्ध हो कर हर शब्द को रोशन कर रहे हैं बहुत सुन्दर कविता है बधाई
जवाब देंहटाएंsurya..... shaktipunj....jevan ka adhar....sundar rachana......pranam.
जवाब देंहटाएंनिर्मला जी इतनी प्रसन्न हो गई कि तीन बार टिप्पणी छोड़ गई, सत्य तो ये है कि आपने पोस्ट ही शानदार लिखी है।
जवाब देंहटाएंअत्यन्त सुंदर रचना! सूर्योदय के होते ही नए दिन की शुरुयात होती है और हम सब यही चाहते हैं की दिन अच्छा बीते!
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत रचना.
जवाब देंहटाएंरामराम.
अत्यन्त सुंदर रचना!
जवाब देंहटाएंसूर्य को बेहद पारखी आँखों से परखने के बाद ही ऐसी सशक्त रचना होती है. आपने सूर्य क़र्ज़ चुका दिया. बधाई.
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत रचना
जवाब देंहटाएंसूर्य देव की महानता को दर्शाती बहुत सुंदर कविता..
जवाब देंहटाएंधन्यवाद शास्त्री जी..
sooryadev par likhi ye rachna jeevan ko bhi sooraj ki roshni ki tarah roshan karti hai.........shukriya
जवाब देंहटाएंBahut sunder rachna.
जवाब देंहटाएंयह सूर्य ऐसे ही उदित होता रहे यह कामना ।
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