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रंग-रंगीली इस
दुनिया में, झंझावात बहुत गहरे हैं।
कीचड़ वाले तालाबों
में, खिलते हुए कमल पसरे हैं।।
पल-दो पल का होता
यौवन,
नहीं पता कितना है
जीवन,
जीवन की आपाधापी
में, झंझावात बहुत उभरे हैं।
कीचड़ वाले तालाबों
में, खिलते हुए कमल पसरे हैं।।
सागर का पानी खारा
है,
नदिया की मीठी धारा
है,
बंजारों का नहीं
ठिकाना, एक जगह वो कब ठहरे हैं।
कीचड़ वाले तालाबों
में, खिलते हुए कमल पसरे हैं।।
शासक बने आज
व्यापारी,
प्रीत-रीत में है मक्कारी,
छिपे हुए उजले
लिबास में, काले दाग़ बहुत गहरे हैं।
कीचड़ वाले तालाबों
में, खिलते हुए कमल पसरे हैं।।
“रूप” हो गया आज
घिनौना,
मानवता का कद है बौना,
दूध-दही के
भण्डारों पर, बिल्ले ही देते पहरे हैं।
कीचड़ वाले तालाबों
में, खिलते हुए कमल पसरे हैं।।
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मंगलवार, 14 अक्टूबर 2014
"गीत-खिलते हुए कमल पसरे हैं" ( डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति बुधवार के - चर्चा मंच पर ।।
जवाब देंहटाएंवाह !
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति !
जवाब देंहटाएं