जानकर सारी हक़ीक़त, आज कितने मौन हैं वो,
और ज्यादा क्या कहें, दुश्मन नहीं तो कौन हैं वो।
प्राण बनकर जो हमारे दिल में रहते थे कभी,
हरकतों से आज अपनी, हो गये खुद गौण हैं वो।१।
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दिल कभी सूखा कुआँ नहीं होता,
बिन लिखे मजमुआँ नहीं होता।
लोग पल-पल की ख़बर रखते हैं,
आग के बिन धुँआ नहीं होता।२।
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उनकी सौगात बहुत दूर गई,
अब तो वो बात बहुत दूर गई।
रौशनी है कहाँ सितारों में,
चाँदनी रात बहुत दूर गई।३।
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कोई आया था हौसले भरने,
कोई आया था चोंचले करने।
कोई आया था खास मक़सद से,
कोई आया था फासले करने।४।
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एक धारा पहाड़ से आई,
राह बरसात में बनी खाई।
दोष क्यों दे रहे हो लहरों को,
जब किनारे हुए हैं हरजाई।५।
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शनिवार, 31 जनवरी 2015
"कुछ मुक्तक-आग के बिन धुँआ नहीं होता" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
शुक्रवार, 30 जनवरी 2015
"मुख पर राम नाम आता है" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
गांधी जी को नमन
राम नाम है
सुख का धाम।
राम सँवारे बिगड़े काम।। असुर विनाशक, जगत नियन्ता, मर्यादापालक अभियन्ता, आराधक तुलसी के राम। राम सँवारे बिगड़े काम।। मात-पिता के थे अनुगामी, चौदह वर्ष रहे वनगामी, किया भूमितल पर विश्राम। राम सँवारे बिगड़े काम।। कपटी रावण मार दिया था लंका का उद्धार किया था, राम नाम में है आराम। राम सँवारे बिगड़े काम।। जब भी अन्त समय आता है, मुख पर राम नाम आता है, गांधी जी कहते हे राम! राम सँवारे बिगड़े काम।। |
गुरुवार, 29 जनवरी 2015
"दोहा, रोला और कुण्डलिया की परिभाषाएँ" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
दोहा और रोला और कुण्डलिया
दोहा
दोहा, मात्रिक अर्द्धसम छन्द है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) में १३-१३ मात्राएँ और सम चरणों (द्वितीय तथा चतुर्थ) में ११-११ मात्राएँ होती हैं। विषम चरणों के आदि में जगण (।ऽ।) नहीं होना चाहिए। सम चरणों के अन्त में एक गुरु और एक लघु मात्रा का होना आवश्यक होता है अर्थात अन्त में लघु होता है।
उदाहरण-
मन में जब तक आपके, होगा शब्द-अभाव।
दोहे में तब तक नहीं, होंगे पुलकित भाव।१।
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गति-यति, सुर-लय-ताल सब, हैं दोहे के अंग।
कविता रचने के लिए, इनको रखना संग।२।
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दोहा वाचन में अगर, आता हो व्यवधान।
कम-ज्यादा है मात्रा, गिन लेना श्रीमान।३।
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लघु में लगता है समय, एक-गुना श्रीमान।
अगर दो-गुना लग रहा, गुरू उसे लो जान।४।
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दोहे में तो गणों का, होता बहुत महत्व।
गण ही तो इस छन्द के, हैं आवश्यक तत्व।५।
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तेरह ग्यारह से बना, दोहा छन्द प्रसिद्ध।
विषम चरण के अन्त में, होता जगण निषिद्ध।६।
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कठिन नहीं है दोस्तों, दोहे का विन्यास।
इसको रचने के लिए, करो सतत् अभ्यास।७।
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रोला
रोला एक छन्द है। यह मात्रिक सम छन्द है। इसमें कुल 24 मात्राएँ होती हैं, अर्थात् विषम चरणों में 11-11 मात्राएँ और सम चरणों में 13-13 मात्राएँ। ग्यारहवीं और तेरहवीं मात्राओं पर विराम होता है। अन्त में 'गुरू' होने आवश्यक हैं।
उदाहरण-
नीलाम्बर परिधान, हरित पट पर सुन्दर है।
२२११ ११२१=११ / १११ ११ ११ २११२ = १३
सूर्य-चन्द्र युग-मुकुट, मेखला रत्नाकर है।
२१२१ ११ १११=११ / २१२ २२११२ = १३
नदियाँ प्रेम-प्रवाह, फूल तारा-मंडल हैं।
११२ २१ १२१=११ / २१ २२ २११२ = १३
बंदीजन खगवृन्द, शेष-फन सिंहासन है।
२२११ ११२१ =११ / २१११ २२११२ = १३
मैथिलीशरण गुप्त
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कुण्डलिया
कुण्डलिया मात्रिक छंद है। एक दोहा तथा दो रोला मिला कर कुण्डलिया बनती है। दोहे का अंतिम चरण ही प्रथम रोले का प्रथम चरण होता है तथा जिस शब्द से कुण्डलिया का आरम्भ होता है, उसी शब्द से कुण्डलिया समाप्त भी होती है।
उदाहरण -
(1)
बेटे-बेटी में करो, समता का व्यवहार।
बेटी ही संसार की, होती सिरजनहार।।
होती सिरजनहार, स्रजन को सदा सँवारा।
जिसने ममता को उर में जीवन भर धारा।।
कह 'मयंक' दामन में कँटक रही समेटे।
बेटी माता बनकर जनती बेटी-बेटे।।
(2)
हरे-भरे हों पेड़ सब, छाया दें घनघोर।
उपवन में हँसते सुमन, सबको करें विभोर।।
सबको करें विभोर, प्रदूषण हर लेते हैं।
कंकड़-पत्थर खाकर, मीठे फल देते हैं।।
कह 'मयंक' आचरण, विचार साफ-सुथरे हों।
उपवन के सारे, पादप नित हरे-भरे हों।।
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बुधवार, 28 जनवरी 2015
"मनाएँ कैसे हम गणतन्त्र" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
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सोमवार, 26 जनवरी 2015
"दोहाष्टक-बुला रहा मधुमास" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
फिर भी सबको प्यार से, बुला रहा मधुमास।१।
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गेहूँ-सरसों फूलते, रहे सुगन्ध लुटाय।
मधुमक्खी-तितली-भ्रमर, खेतों में मँडराय।२।
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झड़बेरी पर छा गये, खट्टे-मीठे बेर।
करते हैं अठखेलियाँ, तीतर और बटेर।३।
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पतझड़ आया तो हुआ, नंगा-नंगा गात।
बसन्त अपने साथ में, लाया नूतन पात।४।
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मन को बहुत लुभा रहे, ये उपवन के फूल।
कितने प्यार-दुलार से, सुमन पालते शूल।५।
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गंगा जी में बह रहा, निर्मल-पावन नीर।
काँवड़ लेने जायेंगे, अब बहनों के बीर।६।
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जीवित माता-पिता की, करना सेवा आप।
मात-पिता को कभी भी, देना मत सन्ताप।७।
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दुनिया में सबसे बड़े, मात-पिता-आचार्य।
सबको जीवन के यही, सिखलाते हैं कार्य।८।
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"गणतन्त्र महान" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
नया वर्ष स्वागत करता है , पहन नया परिधान । सारे जग से न्यारा अपना , है गणतन्त्र महान ॥
चन्दा , सूरज से उजियारा,
संविधान हम सबको प्यारा ।
आन -बान और शान हमारी ,
झण्डा ऊँचा रहे हमारा ।
प्रजातंत्र पर भारत वाले करते हैं अभिमान ।
सारे जग से न्यारा अपना , है गणतन्त्र महान ॥
शीश मुकुट हिमवान अचल है ,
सुंदर -सुंदर ताजमहल है ।
गंगा - यमुना और सरयू का -
पग पखारता पावन जल है ।
प्राणों से भी मूल्यवान है हमको हिन्दुस्तान ।
सारे जग से न्यारा अपना , है गणतन्त्र महान ॥
स्वर भर कर इतिहास सुनाता ,
महापुरुषों से इसका नाता ।
गौतम , गांधी , दयानन्द की ,
प्यारी धरती भारतमाता ।
यहाँ हुए हैं पैदा नानक , राम , कृष्ण , भगवान् ।
सारे जग से न्यारा अपना , है गणतन्त्र महान ॥
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रविवार, 25 जनवरी 2015
"गणतन्त्र पर्व पर" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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