मित्रों!
“उत्तराखण्ड बालकल्याण साहित्य संस्थान”
के तत्वावधान में कल स्थानीय पेपर मिल
“खटीमा फाइबर्स” सभागर में
नववर्ष के आगमन पर
एक कविसम्मेलन का आयोजन किया गया था।
जिसमें मैंने अपनी इन रचनाओं का पाठ किया।
सम्बन्ध आज सारे, व्यापार हो गये हैं।
अनुबन्ध आज सारे, बाजार हो गये हैं।।
न वो प्यार चाहता है, न दुलार चाहता है,
जीवित पिता से पुत्र, अब अधिकार चाहता है,
सब टूटते बिखरते, परिवार हो गये हैं।
सम्बन्ध आज सारे, व्यापार हो गये हैं।।
घूँघट की आड़ में से, दुल्हन का झाँक जाना,
भोजन परस के सबको, मनुहार से खिलाना,
ये दृश्य देखने अब, दुश्वार हो गये हैं।
सम्बन्ध आज सारे, व्यापार हो गये हैं।।
वो सास से झगड़ती, ससुरे को डाँटती है,
घर की बहू किसी का, सुख-दुख न बाटँती है,
दशरथ, जनक से ज्यादा लाचार हो गये हैं।
सम्बन्ध आज सारे, व्यापार हो गये हैं।।
जीवन के हाँसिये पर, घुट-घुट के जी रहे हैं,
माँ-बाप सहमे-सहमे, गम अपना पी रहे हैं,
कल तक जो पालते थे, अब भार हो गये हैं।
सम्बन्ध आज सारे, व्यापार हो गये हैं।।
--
गये साल को है प्रणाम, है नये
साल का अभिनन्दन,
पूजा-अजान के साथ-साथ, होवे
भारतमाँ का वन्दन।
जीवित जंगल और बाग रहें, सुर
सज्जित राग-विराग रहें,
सच्चे अर्थों में तब ही तो, होगा
नूतन का अभिनन्दन।।
--
इस नये वर्ष में आप हर्षित रहें,
ख्याति-यश में सदा आप चर्चित रहें।
आज उपवन में महकें सुगन्धित सुमन,
राष्ट्र के यज्ञ में आप अर्पित रहें।।
--
गुज़र गया है साल पुराना, गाओ फिर
से नया तराना,
सिर्फ कलेण्डर ही तो बदला, वही ठौर
है, वही ठिकाना।
लोग मील के पत्थर जैसे, अपनी
मंजिल पायें कैसे?
औरों को पथ बतलाते हैं, नहीं
जानते कदम बढ़ाना।।
|
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सोमवार, 5 जनवरी 2015
"गीत-सम्बन्ध आज सारे व्यापार हो गये हैं" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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बहुत सुन्दर सामयिक रचना !
जवाब देंहटाएंक्या हो गया है हमें?
वाह शास्त्री जी
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर सम_सामयिक रचना ।
कल 08/जनवरी/2015 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद !