आया नूतन वर्ष तो, ठहर गयी रफ्तार।
नभ पर बादल छा रहे, शीतलता की मार।१।
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झूम रहा है हर्ष से, अब सम्पूर्ण समाज।
आशाएँ मन में बढ़ीं, नये साल से आज।२।
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मुझको नूतन वर्ष से, कहनी है ये बात।
आशाओं पर हो नहीं, कभी तुषारापात।३।
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साल पुराना दे गया, कुछ खुशियाँ-अवसाद।
लेकिन नूतन वर्ष में, होवें नहीं फसाद।४।
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विदा किया है गये को, नया आ गया साल।
आशाएँ मन में जगीं, सुधरेंगे अब हाल।५।
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नये साल में अब हमें, ऐसी है उम्मीद।
सीमा पर होंगे नहीं, अपने वीर शहीद।६।
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बाज़ारों से अब नहीं, होंगी चीजें लुप्त।
मँहगाई की मार से, जनता होगी मुक्त।७।
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नहीं लुटेगी अब कभी, ललनाओं की लाज।
भय से होगा मुक्त अब, अपना देश-समाज।८।
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कुर्सी के मद में नहीं, कोई चले कुचाल।
दहशतगर्दों की नहीं, गलने पाये दाल।९।
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राजा और वज़ीर अब, सुने सभी के दर्द।
अधिकारी हों देश के, जनता के हमदर्द।१०।
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गुरुवार, 1 जनवरी 2015
"विवध दोहावली-नूतन वर्ष" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक)
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बहुत सुंदर.
जवाब देंहटाएंउत्तम प्रस्तुति। नववर्ष की शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंbahut sundar dohe nav varsh ki hardik shubhkamnayen
जवाब देंहटाएंसार्थक रचना
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छी जानकारी मिल रही है आपकी साईट से
जवाब देंहटाएंDATA ENTRY JOB
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सुंदर प्रस्तुति। आपको नववर्ष की अनेक शुभ कामनाएँ।
जवाब देंहटाएंसुंदर...नववर्ष की बधाई और शुभकामनाएं..
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शनिवार 01 जनवरी 2022 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
जवाब देंहटाएंवाह!!!
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर लाजवाब दोहे।