जानकर सारी हक़ीक़त, आज कितने मौन हैं वो,
और ज्यादा क्या कहें, दुश्मन नहीं तो कौन हैं वो।
प्राण बनकर जो हमारे दिल में रहते थे कभी,
हरकतों से आज अपनी, हो गये खुद गौण हैं वो।१।
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दिल कभी सूखा कुआँ नहीं होता,
बिन लिखे मजमुआँ नहीं होता।
लोग पल-पल की ख़बर रखते हैं,
आग के बिन धुँआ नहीं होता।२।
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उनकी सौगात बहुत दूर गई,
अब तो वो बात बहुत दूर गई।
रौशनी है कहाँ सितारों में,
चाँदनी रात बहुत दूर गई।३।
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कोई आया था हौसले भरने,
कोई आया था चोंचले करने।
कोई आया था खास मक़सद से,
कोई आया था फासले करने।४।
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एक धारा पहाड़ से आई,
राह बरसात में बनी खाई।
दोष क्यों दे रहे हो लहरों को,
जब किनारे हुए हैं हरजाई।५।
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शनिवार, 31 जनवरी 2015
"कुछ मुक्तक-आग के बिन धुँआ नहीं होता" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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Bahut sundar
जवाब देंहटाएंBahut sundar
जवाब देंहटाएंबहुत लाजवाब
जवाब देंहटाएंसुंदर ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर !
जवाब देंहटाएंBhut khub
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना.
जवाब देंहटाएंहर मुक्तक जैसे सचाई बयान कर रहा है ... बहुत ही गहरा ... लाजवाब ...
जवाब देंहटाएंबधाई ...