ग़ज़ल क्या है?
ग़ज़ल यह
अरबी साहित्य की प्रसिद्ध काव्य विधा है जो बाद में फ़ारसी, उर्दू और हिंदी
साहित्य में भी बेहद लोकप्रिय हुई। संगीत के क्षेत्र में इस विधा को गाने के लिए
इरानी और भारतीय संगीत के मिश्रण से अलग शैली निर्मित हुई।
ग़ज़ल एक ही
बहर और वज़न के अनुसार लिखे गए शेरों का समूह है। इसके पहले शेर को मतला कहते
हैं। ग़ज़ल के अन्तिम शेर को मक़्ता कहते हैं। मक़्ते में सामान्यतः शायर अपना
नाम रखता है। आम तौर पर ग़ज़लों में शेरों की विषम संख्या होती है (जैसे तीन, पाँच, सात..)। एक ग़ज़ल
में 5 से लेकर 25 तक शेर हो सकते
हैं। ये शेर एक दूसरे से स्वतंत्र होते हैं। कभी-कभी एक से अधिक शेर मिलकर अर्थ
देते हैं। ऐसे शेर कता बंद कहलाते हैं।
ग़ज़ल के
शेर में तुकान्त शब्दों को क़ाफ़िया कहा जाता है और शेरों में दोहराए जाने वाले
शब्दों को रदीफ़ कहा जाता है। शेर की पंक्ति को मिस्रा कहा जाता है। मतले के
दोनों मिस्रों में काफ़िया आता है और बाद के शेरों की दूसरी पंक्ति में काफ़िया
आता है। रदीफ़ हमेशा काफ़िये के बाद आता है। रदीफ़ और काफ़िया एक ही शब्द के भाग
भी हो सकते हैं और बिना रदीफ़ का शेर भी हो सकता है जो काफ़िये पर समाप्त होता
हो।
ग़ज़ल के
सबसे अच्छे शेर को शाहे वैत कहा जाता है। ग़ज़लों के ऐसे संग्रह को दीवान कहते
हैं जिसमें हर हर्फ से कम से कम एक ग़ज़ल अवश्य हो। उर्दू का पहला दीवान शायर
कुली कुतुबशाह है।
ग़ज़ल के
प्रकार
तुकांतता के
आधार पर ग़ज़लें दो प्रकार की होती हैं-
मुअद्दस
ग़जलें- जिन ग़ज़ल के अश'आरों में रदीफ़ और काफ़िया दोनों का ध्यान रखा जाता
है।
मुकफ़्फ़ा
ग़ज़लें- जिन ग़ज़ल के अश'आरों में केवल काफ़िया का ध्यान रखा जाता है।
भाव के आधार
पर भी गज़लें दो प्रकार की होती हैं-
--
मुसल्सल
गज़लें-
जिनमें शेर का भावार्थ एक दूसरे से आद्यन्त जुड़ा रहता है।
ग़ैर
मुसल्सल गज़लें-
जिनमें हरेक शेर का भाव स्वतन्त्र होता है।
ग़ज़लों का
आरम्भ अरबी साहित्य की काव्य विधा के रूप में हुआ। अरबी भाषा में कही गयी ग़ज़लें
वास्तव में नाम के ही अनुरूप थी अर्थात उसमें औरतों से बातें या उसके बारे में
बातें होती थी।
अरबी से
फारसी साहित्य में आकर यह विधा शिल्प के स्तर पर तो अपरिवर्तित रही किन्तु कथ्य
की दृष्टि से वे उनसे आगे निकल गई। उनमें बात तो दैहिक या भौतिक प्रेम की ही की
गई परन्तु उसके अर्थ विस्तार द्वारा दैहिक प्रेम को आध्यात्मिक प्रेम में बदल
दिया गया। अरबी का इश्के मज़ाजी फारसी में इश्के हकीकी हो गया। फारसी ग़ज़ल में
प्रेमी को सादिक (साधक) और प्रेमिका को माबूत (ब्रह्म) का दर्जा मिल गया। ग़ज़ल
को यह रूप देने में सूफी साधकों की निर्णायक भूमिका रही। सूफी साधना विरह प्रधान
साधना है। इसलिए फ़ारसी ग़ज़लों में भी संयोग के बजाय वियोग पक्ष को ही प्रधानता
मिली।
फ़ारसी से
उर्दू में आने पर भी ग़ज़ल का शिल्पगत रूप ज्यों का त्यों स्वीकार कर लिया गया
लेकिन कथ्य भारतीय हो गया। लेकिन उत्तर भारत की आम अवधारणा के विपरीत हिन्दुस्तानी
ग़ज़लों का जन्म बहमनी सल्तनत के समय दक्कन में हुआ जहाँ गीतों से प्रभावित
ग़ज़लें लिखी गयीं। भाषा का नाम रेख़्ता (गिरा-पड़ा) पड़ा। वली दकनी, सिराज दाउद आदि इसी
प्रथा के शायर थे जिन्होंने एक तरह से अमीर ख़ुसरो (१३१० इस्वी) की परंपरा को
आगे बढ़ाया। दक्किनी उर्दू के ग़ज़लकारों ने अरबी फारसी के बदले भारतीय प्रतीकों, काव्य रूढ़ियों, एवं सांस्कृतिक
पृष्ठभूमि को लेकर रचना की।
उस समय
उत्तर भारत में राजकाज की भाषा फारसी थी इसलिए ग़ज़ल जब उत्तर भारत में आयी तो
पुनः उसपर फारसी का प्रभाव बढ़ने लगा। ग़ालिब जैसे उर्दू के श्रेष्ठ ग़ज़लकार भी
फारसी ग़ज़लों को ही महत्वपूर्ण मानते रहे और उर्दू ग़जल को फारसी के अनुरूप
बनाने की कोशिश करते रहे। बाद में दाउद के दौर में फारसी का प्रभाव कुछ कम हुआ।
इकबाल की आरंभिक ग़ज़लें इसी प्रकार की है। अन्ततः राजनीतिक स्थितियों के कारण
उर्दू ग़ज़लों पर फारसी का प्रभाव पुनः बढ़ने लगा। 1947 के बाद इसमें पुनः
कमी आने लगी।
हिन्दी के
अनेक रचनाकारों ने इस विधा को अपनाया। जिनमें निराला, शमशेर, बलबीर सिंह रंग, भवानी शंकर, जानकी वल्लभ
शास्त्री, सर्वेश्वर दयाल सक्सेना, त्रिलोचन आदि प्रमुख
हैं। इस क्षेत्र में सर्वाधिक प्रसिद्धि दुष्यन्त कुमार को मिली।
(विकीपीडिया से साभार)
|
"उच्चारण" 1996 से समाचारपत्र पंजीयक, भारत सरकार नई-दिल्ली द्वारा पंजीकृत है। यहाँ प्रकाशित किसी भी सामग्री को ब्लॉग स्वामी की अनुमति के बिना किसी भी रूप में प्रयोग करना© कॉपीराइट एक्ट का उलंघन माना जायेगा। मित्रों! आपको जानकर हर्ष होगा कि आप सभी काव्यमनीषियों के लिए छन्दविधा को सीखने और सिखाने के लिए हमने सृजन मंच ऑनलाइन का एक छोटा सा प्रयास किया है। कृपया इस मंच में योगदान करने के लिएRoopchandrashastri@gmail.com पर मेल भेज कर कृतार्थ करें। रूप में आमन्त्रित कर दिया जायेगा। सादर...! और हाँ..एक खुशखबरी और है...आप सबके लिए “आपका ब्लॉग” तैयार है। यहाँ आप अपनी किसी भी विधा की कृति (जैसे- अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कर सकते हैं। बस आपको मुझे मेरे ई-मेल roopchandrashastri@gmail.com पर एक मेल करना होगा। मैं आपको “आपका ब्लॉग” पर लेखक के रूप में आमन्त्रित कर दूँगा। आप मेल स्वीकार कीजिए और अपनी अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कीजिए। |
Linkbar
फ़ॉलोअर
शुक्रवार, 9 जनवरी 2015
"ग़ज़ल की परिभाषा" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
लोकप्रिय पोस्ट
-
दोहा और रोला और कुण्डलिया दोहा दोहा , मात्रिक अर्द्धसम छन्द है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) मे...
-
लगभग 24 वर्ष पूर्व मैंने एक स्वागत गीत लिखा था। इसकी लोक-प्रियता का आभास मुझे तब हुआ, जब खटीमा ही नही इसके समीपवर्ती क्षेत्र के विद्यालयों म...
-
नये साल की नयी सुबह में, कोयल आयी है घर में। कुहू-कुहू गाने वालों के, चीत्कार पसरा सुर में।। निर्लज-हठी, कुटिल-कौओं ने,...
-
समास दो अथवा दो से अधिक शब्दों से मिलकर बने हुए नए सार्थक शब्द को कहा जाता है। दूसरे शब्दों में यह भी कह सकते हैं कि ...
-
आज मेरे छोटे से शहर में एक बड़े नेता जी पधार रहे हैं। उनके चमचे जोर-शोर से प्रचार करने में जुटे हैं। रिक्शों व जीपों में लाउडस्पीकरों से उद्घ...
-
इन्साफ की डगर पर , नेता नही चलेंगे। होगा जहाँ मुनाफा , उस ओर जा मिलेंगे।। दिल में घुसा हुआ है , दल-दल दलों का जमघट। ...
-
आसमान में उमड़-घुमड़ कर छाये बादल। श्वेत -श्याम से नजर आ रहे मेघों के दल। कही छाँव है कहीं घूप है, इन्द्रधनुष कितना अनूप है, मनभावन ...
-
"चौपाई लिखिए" बहुत समय से चौपाई के विषय में कुछ लिखने की सोच रहा था! आज प्रस्तुत है मेरा यह छोटा सा आलेख। यहाँ ...
-
मित्रों! आइए प्रत्यय और उपसर्ग के बारे में कुछ जानें। प्रत्यय= प्रति (साथ में पर बाद में)+ अय (चलनेवाला) शब्द का अर्थ है , पीछे चलन...
-
“ हिन्दी में रेफ लगाने की विधि ” अक्सर देखा जाता है कि अधिकांश व्यक्ति आधा "र" का प्रयोग करने में बहुत त्र...
बहुत सुंदर गजल सुंदर जानकारी ।
जवाब देंहटाएंगजल से सम्बंधित बहुत सुन्दर एवं उपयोगी जानकारी.
जवाब देंहटाएंनई पोस्ट : सच ! जो सामने आया ही नहीं
बहुत अच्छी ग़ज़ल और जानकारी भी।
जवाब देंहटाएंमेरी सोच मेरी मंजिल
मनोरंजन के साथ साथ जानकारी...बहुत सुन्दर।
जवाब देंहटाएंबहुत खूब
जवाब देंहटाएंसार्थक गजल प्रस्तुति के साथ उसके बारे में जानकारी प्रस्तुति हेतु आभार!
जवाब देंहटाएंपुरानी भावभूमियों से हट कर रची गई गज़ल बहुत अच्छी लगी और जानकारी उपयोगी है ही - आपका दोहरा आभार !
जवाब देंहटाएंउत्तम जानकारी प्राप्त हुई।आभार
जवाब देंहटाएं