गीत और
ग़ज़लों वाला जो सौम्य सरोवर है।
इसमें मन के अनुभावों की छिपी धरोहर है।।
शब्द हिलोरें लेते जब भी मेरी रीती सी गागर में,
देता हूँ उनको उडेल मैं, धारा बन करके सागर
में,
उच्चारण में ठहर गया जीवन्त कलेवर है।
इसमें मन के अनुभावों की छिपी धरोहर है।।
पगडण्डी है वही पुरानी, जिसको मैंने अपनाया
है,
छन्दों का संसार सनातन, मेरे मन को ही भाया
है,
छल-छल, कल-कल करती गंगा
बहुत मनोहर है।
इसमें मन के अनुभावों की छिपी धरोहर है।।
पर्वत मालाएँ फैली हैं, कितनी धरा-धरातल पर,
किन्तु हिमालय जैसा कोई, नहीं दूसरा भूतल पर,
जो अरिदल से रक्षा करता वही महीधर है।
इसमें मन के अनुभावों की छिपी धरोहर है।।
बेच रहे ऊँचे दामों में, स्वादहीन पकवानों को,
शिक्षा की बोली लगती है, ऊँचे भव्य मकानों
में,
जो बहनों की लाज बचाता, वही सहोदर है।
इसमें मन के अनुभावों की छिपी धरोहर है।।
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बुधवार, 11 मार्च 2015
"अनुभावों की धरोहर" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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आपका blog अच्छा है। मै भी Social Work करती हूं।
जवाब देंहटाएंअनार शब्द सुनते ही एक कहावत स्मरण हो आता है-‘एक अनार, सौ बीमार।' चौंकिए मत, अनार बीमारियों का घर नहीं है, बल्कि यह तो हमारे शरीर के लिए काफी फायदेमंद होता है। इससे उपचार और अन्य आयुर्वेदा के टीप्स पढ़ने के लिए यहां पर Click करें और पसंद आये तो इसे जरूर Share करें ताकि अधिक से अधिक लोग इसका फायदा उठा सकें। अनार से उपचार
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 12-03-2015 को चर्चा मंच पर चर्चा - 1915 में दिया जाएगा
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
बहुत खूबसूरत रचना।
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