जब बसन्त का मौसम आता,
गीत प्रणय के गाता उपवन।
मधुमक्खी-तितली-भँवरे भी,
खुश हो करके करते गुंजन।।
पेड़ और पौधें भी फिर से,
नवपल्लव पा जाते हैं,
रंग-बिरंगे सुमन चमन में,
हर्षित हो मुस्काते हैं,
नयी फसल से भर जाते हैं,
गाँवों में सबके आँगन।
मधुमक्खी-तितली-भँवरे भी,
खुश हो करके करते गुंजन।।
आत है जब नवसम्वतसर,
मन में चाह जगाता है,
जीवन में आगे बढ़ने की,
नूतन राह दिखाता है,
होली पर अच्छे लगते हैं,
सबको नये-नये व्यंजन।
मधुमक्खी-तितली-भँवरे भी,
खुश हो करके करते गुंजन।।
माता का वन्दन करने को,
आते हैं नवरात्र सुहाने,
तन-मन का शोधन करने को,
गाते भक्तिगीत तराने,
राम जन्म लेते नवमी पर
दुःख दूर करते रघुनन्दन।
मधुमक्खी-तितली-भँवरे भी,
खुश हो करके करते गुंजन।।
हर्ष मनाते बैशाखी पर,
अन्न घरों में आ जाता है,
कोयल गाती पंचम सुर में,
आम-नीम बौराता है,
नीर सुराही का पी करके,
मन हो जाता है चन्दन।
मधुमक्खी-तितली-भँवरे भी,
खुश हो करके करते गुंजन।।
देवभूमि अपना भारत है,
आते हैं अवतार यहाँ,
षड्ऋतुओं का होता संगम,
दुनियाँ में है और कहाँ,
भारत की पावन माटी को,
करता हूँ शत्-शत् वन्दन।
मधुमक्खी-तितली-भँवरे भी,
खुश हो करके करते गुंजन।।
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रविवार, 29 मार्च 2015
"गीत-देवभूमि अपना भारत" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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जवाब देंहटाएंप्रणाम शास्त्री जी ...
भावनाओं सुन्दर अविरल प्रवाह
जवाब देंहटाएंवाह .... अनुपम भाव संयोजन
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर देशप्रेम के रंग में रंगा नवगीत...
जवाब देंहटाएंजय भारत!
सुंदर रचना...
जवाब देंहटाएंनीर सुराही का पी करके,
जवाब देंहटाएंमन हो जाता है चन्दन।
बहुत ही सुंदर पंक्तियां. मन को शब्दों से ठंडक पहुंचाते शब्द हैं आपकी इस सुंदर रचना में.
बहुत सुंदर भाव.
जवाब देंहटाएंभारत की पावन माटी को,
जवाब देंहटाएंकरता हूँ शत्-शत् वन्दन।
मनभावन नवगीत!