बचपन मेरा खो गया, हुआ वृद्ध मैं आज।
सोच-समझकर अब मुझे, करने हैं सब काज।।
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जब तक मेरे शीश पर, रहा आपका हाथ।
लेकिन अब आशीष का, छूट गया है साथ।।
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पूज्य पिता जी !
आपके बिन मेरी होली सूनी है। आपकी बहुत याद आ रही है पिता जी। आज पहली ऐसी
होली है जो हम लोग आपके बिना मना रहे हैं। घर सूना है आँगन सूना है। बार बार उस
कमरे को देख रहा हूँ जिसमें आपका चित्र लगा है। इस खुशी के त्यौहार पर भी
बार-बार आँखों में आँसू आ रहे हैं। आप हमारे बीच रहे तो मन में एक विश्वास था कि
पूज्या माता जी का आशीश तो हमें मिल ही रहा है।
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परन्तु पिछले 4 दिनों से माता जी
भी बीमार हैं। उनके पैरों ने काम करना बन्द कर दिया है। मैं रात दिन उनकी सेवा
में लगा हूँ। परमात्मा से यही प्रार्थना कर रहा हूँ कि वो माता जी को जल्दी ही
स्वस्थ कर दें। पहले से थोड़ा सुदार है तो मन में एक आशा की किरण उगी है कि वो
जल्दी ही ठीक हो जायेंगी।
लोग आ रहे हैं। होली की बधायी दे रहे हैं। साथ
में सन्देश भी दे रहे हैं कि शोक को हटाकर त्यौहार को मनाइए। मगर पिता जी 63 साथ
का आपका साथ भुलाए नहीं भूलता है। गत वर्ष की ही तो बात है आप हमारे साथ थे।
होली पर आपको रंग का तिलक लगा कर आपका आशीर्वाद मिला था। मगर आज आप हमारे मध्य
में नहीं हैं।
कल तक मैं अपने को बच्चा समझता था मगर आज ऐसा
लगता है कि मैं बूढ़ा हो गया हूँ। पिता जी आप जहाँ भी हैं खुश रहें और अपने आशीर्वादों
की वर्षा मुझ पर और मेरे परिवार पर करते रहना।
भारी मन से आज रंगों के इस त्यौहार पर आपको
स्मरण करते हुए अपनी ओर से और आपकी ओर से भी सबको होली की शुभकामनाएँ प्रेषित
करता हूँ।
प्रातःस्मरणीय पूज्य पिताश्री! आपके बिना बहुत अधूरा हूँ मैं। आपके बिना मेरा मन बहुत उदास है। परमपिता परमात्मा आपको सद्गति और आपकी आत्मा को शान्ति प्रदान करें। हे प्रभो! आपसे बारम्बार यही विनय है।
"पिता जी और मैं"
पन्द्रह अगस्त, 2012 को पिता जी दिन में 3 बजे अपराह्न् घर के आँगन में फिसलकर गिर पड़े थे। चोट तो उनको नहीं लगी थी मगर 89 साल की उमर में उनके मन में यह डर बैठ गया था कि खड़ा होकर चलूँगा तो गिर जाऊँगा और उन्होंने खड़े होकर चलना बन्द ही कर दिया था। 2 फरवरी 2014 तक वो घुटनों के बल पर खिसक-खिसक कर चलते थे।
वो ग्राउण्ड-फ्लोर पर रहते थे जबकि मेरा आवास प्रथम मंजिल पर है। मगर मन में यह सन्तोष था कि पिता जी अपने दैनिक कार्य स्वयं कर रहे हैं। लेकिन 2 फरवरी को प्रातः 11 बजे वो गर्म पानी से स्नान करने प्रथम तल पर आये और अपने दैनिक कार्य सम्पन्न करके भोजन किया। तब तक मैं अपने चिकित्सालय में आ गया था।
अचानक मुझे सढ़ियों पर से उनके गिरने की आवाज आयी। मैं दौड़कर सीढ़ियों तक गया तो पिता जी सीढ़ियों के मध्य में बने बड़े स्टैपर पर अचेत पड़े थे। मैंने उन्हें हिलाया-डुलाया और पानी के छींटे उनके चेहरे पर दिये तो उनको होश आ गया। कहने लगे कि मुझे कुछ नहीं हुआ है।
लेकिन वो अपने पाँव बिलकुल हिला जुला नहीं पा रहे थे। किसी तरह उनको मैंने गोद में उठाकर बिस्तर पर लिटा दिया। अब पिता जी को दर्द का काफी आभास हो रहा था। डॉक्टर को दिखाया तो उसने कहा कि इनकी आयु बहुत ज्यादा हो चुकी है। पैरों से तो पहले भी नहीं चल पाते थे अब दवा और इलाज से थोड़े दिन में ठीक हो जायेंगे। अन्ततः एक सप्ताह में पिता जी का चोट का दर्द ठीक हो गया। वो लगभग सामान्य हो गये लेकिन अब वो घुटनों के बल पर चल नहीं पाते थे।
अब मेरा प्रतिदिन का कार्य उनको दैनिक क्रियायें कराना था। जब तक सर्दी रही तब तक गर्म पानी में रोज तौलिया भिगो कर उनकी साफ-सफाई करना और सप्ताह में दो बार गर्म पानी से स्नान कराना। हाँ... इतना अवश्य था कि उनकी चारपाई के पास में रखी लकड़ी की कुर्सी पर मैं भोजन रख दिया करता था तो वो अपने आप खाना खा लेते थे।
जैसे-तैसे सरदी का मौसम बीत गया और गर्मी आ गयी। मई का महीना आते-आते पिता जी की हालत पहले से खराब होने लगी। अब वो ठीक से बैठ भी नहीं पाते थे। रजाई का सहारा उनकी पीठ के पीछे लगा कर उनको मैं स्वयं बैठाता था और वो अपने आप खाना खा लेते थे। लेकिन आखिर ऐसा कब तक चलता?
दिन-प्रतिदिन उनका स्वास्थ्य गिरता जा रहा था। अब वो बैठने में भी असमर्थ हो गये थे। अतः उनको लेटे-लेटे ही प्रातः दाल-चावल और दाल में रोटी गलाकर मैं चम्मच से स्वयं खिलाता था।
पिता जी को मीठा बहुत पसन्द था। दोपहर बाद उनको आम का मैंगोशेक और रात के भोजन में एक कटोरा दूध में 7-8 रस (बैड) के पीस डालकर उनको चम्मच से खिलाता था।
बिस्तर प्रतिदिन ही गन्दा हो जाता था। इसलिए 4 मोटी दरियाँ, दो कम्बल और 2 लोई उनके लिए थीं। मैं पिता जी का एक मात्र पुत्र था इसलिए मैं उनका बिस्तर और कपड़े स्वयं ही धोता था, परिवार के किसी व्यक्ति को इस काम में मैं हाथ भी लगाने नहीं देता था।
उस दिन 17 जुलाई, 2014 दिन बृहस्पतिवार था। शाम को 7-30 पर पिता जी को दूध में रस (ब्रैड) गलाकर चम्मच से खिलाया। उन्होंने बहुत चाव से खाया और थोड़ी देर बाद ही कहने लगे कि मुझे करण्ट जैसा लग रहा है। फिर हँस-हँस कर अपने जन्मस्थान नजीबाबाद की बहुत सारी बातें करने लगे। मुझे भी पहचान नहीं पा रहे थे। यानि वर्तमान स्मृति लगभग खत्म ही हो गयी थी।
पिता जी पिछले 5 महीने से पैर नहीं हिलाते थे मगर उस समय बार-बार पैर चारपाई से नीचे ला रहे थे और नजीबाबाद के पास के गाँव जल्लाबाद का नाम लेकर कह रहे थे कि रिक्शा बुला दो मुझे नजीबाबाद,रम्पुरे मुहल्ले में घर जाना है। बार-बार पूछते कि मैं कहाँ हूँ? जब मैं कहता कि आप खटीमा में हो, यह आपका ही तो घर है, आपने ही तो इसे बनाया है। तो हँस पड़ते थे और पूछते थे कि तुम कौन हो? मैं अपना नाम बताता तो कहने लगते कि तुम झूठ बोल रहे हो। फिर मैं पूछता कि आपके कितने लड़के हैं तो बताने लगते कि रूपचन्द ही तो मेरा एकमात्र लड़का है, रूपवती, बेबी और विजयलक्ष्मी तीन लड़कियाँ हैं।
अब तो मेरी श्रीमती जी का और मेरा साहस जवाब दे चुका था। आशंका हो गयी थी कि पिता जी का शायद यह अन्त समय है। इसलिए सभी रिश्तेदारों को फोन कर दिये और पिता जी की हालत बता दी।
इसके बाद मैंने पिता जी को जबरदस्ती पानी के साथ दवाई खिला दी। पिता जी बहुत कहते रहे कि मैं तो बिल्कुल ठीक हूँ दवा क्यों दे रहे हो? फिर मैंने पिता जी के हाथों-पाँवों की मालिश की तो रात में 10 बजे के बाद पिता जी की चेतना वापिस लौट आयी और हमारी जान में जान आयी। इसके बाद मैंने, श्रीमती जी ने और माता जी ने रात को 11 बजे खाना खाया।
बारह दिनों तक पिता जी बिल्कुल ठीक रहे और उनका कड़ाकेदार आवाज में बात करना, दोनों समय मेरे हाथों से दूध और ब्रेड खाना जारी रहा।
अट्ठाइस जुलाई, 2014 सोमवार का दिन था। घर में कढ़ी बनी थी। मैं पिता जी को प्रातः साढ़े दस बजे कढ़ी-चावल मिलाकर चम्मच से खिलाने लगा तो पिता जी ने 2-3 कौर खाये और उनको थूकने लगे। मैं कहने लगा कि क्या कर रहे हो पिता जी! खाना कपड़ों पर क्यों थूक रहे हो? पिता जी बोले मेरी तबियत नहीं कर रही है खाने की। खैर मैंने वो खाना घर में पल रहे अपने पालतु कुत्ते के आगे डाल दिया और एक कटोरा दूध में रस (ब्रैड) गलाकर ले आया पिता जी ने आराम से वो सब खा लिया। मेरे मन को तसल्ली हो गयी।
शाम को 7-45 पर मैं फिर दूध व रस उनको चम्मच से खिलाने गया तो कहने लगे कि मुझे भूख नहीं है मगर मैंने उनको एक कटोरा दूध में भीगे रस खिला दिये। मैं उनके पास कुर्सी पर बैठ गये तो पिता जी बोले कि जाओ आराम करो।
मैंने कहा कि पिता जी अभी मैं आपके पास बैठा हूँ। मगर वो कहने लगे कि मुझे नींद आ रही है। जाओ तुम भी आराम करो।...और मैं मेन गेट में ताला लगा कर उपर घर में चला आया।
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सुबह मैं अक्सर 6 बजे तक सोकर उठता था। उसके बाद सीधा पिता जी पास जाता था। मगर 29 जुलाई की सबह 5 बजे के लगभग मुझे स्वप्न आया कि पिता जी मुझे बुला रहे हैं। हड़बड़ाकर मैं उठकर पिता जी के पास गया देखा कि वह प्रसन्नमुद्रा में सो रहे हैं इसलिए मैंने उन्हें जगाना उचित नहीं समझा और लौटकर वापिस जाने लगा।
तभी मन में विचार आया कि पिता जी को एक बार जगाकर तो देखूँ। जैसे ही मैंने पिता जी का हाथ छुआ तो मुझे वो ठण्डा महसूस हुआ। फिर उनके हाथ-पैर मोड़कर देखे तो सारे जोड़ मुड़ रहे थे। शरीर बिल्कुल नही अकड़ा था मगर पिता जी संसार छोड़कर चिर निद्रा में लीन हो चुके थे।
इसके बाद पड़ोस में खबर लगी तो पड़ोसियों ने उन्हें भूमि पर शैय्या पर लिटा दिया। घर में माता जी, मैं और मेरी पत्नी ही थी हम सब लोग बिलख-बिलखकर रो रहे थे। सुबह 5-30 तक सब रिश्तेदारों को फोन कर दिये और शाम 4 बजे तक दूर-दूर के और पास के भी सभी रिश्तेदार आ चुके थे। यानि अन्तिम दर्शन सबको मिल गये थे।
पिता जी का विमान विधिवत् सजाया गया। पिता जी के भार से कहींअधिक 35 किलोग्राम हवनसामग्री, 15 किलोग्राम देशी घी, 2 किलो मेवा और साढ़े पाँच कुन्टल लकड़ियों से स्थानीय मुक्तिधाम में महर्षि स्वामी दयानन्द द्वारा लिखित संस्कारविधि से वेदमन्त्रों का पाठ करके अन्तिम संस्कार विधि-विधान से किया गया।
तीसरे दिन जब पूल चुनने के लिए गये तो पूरा मुक्तिधाम घी-सामग्री की सुगन्ध से महक रहा था। आर्यसमाज के विुधानानुसार अस्थियाँ चुन कर स्थानीय मुक्तिधाम में गाड़ दी गयीं लेकिन माता जी की इच्छा थी कि कुछ अस्थि सुमनों को हरिद्वार गंगा में प्रवाहित किया जाये। उनकी इच्छा का सम्मान करते हुए हमनें कुछ अस्थियाँ को मिट्टी के पात्र (कलश) में सहेज कर मुक्तिधाम में ही रख दिया।
उसके पश्चात् लगातार तीन दिनों तक यज्ञ किया किया और चौथे दिन यानि एक अगस्त, 2014 शुक्रवार को नागपंचमी के दिन विशाल शान्तियज्ञ किया और श्रद्धाजंलि समारोह किया। इस अवसर पर ब्रह्मभोज का भी आयोजन किया गया।
चार अगस्त को अपनी पूज्या माता जी की इच्छानुसार अस्थि-कलश को विधि-विधान से हरिद्वार ले जाकर पतितपावनी माँ गंगा में प्रवाहित कर दिया और अपने घर वापिस आ गया।
परमपिता परमात्मा से प्रार्थना है वे कि पूज्य पिता जी की आत्मा को सद्गति और शान्ति प्रदान करें।
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त्यौहार पर याद आते ही हैं पूर्वज । ऊँ शाँति ।
जवाब देंहटाएंबेहद भावपूर्ण...सादर नमन!!
जवाब देंहटाएंमर्मस्पर्शी .............सादर नमन ....ईश्वर आपकी सारी मनोकामनाएं पूर्ण करें!
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण. भगवान उनकी आत्मा को शांति दे
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