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लिए अजूबे साथ में, कुदरत
की करतूत।
आलू धरती में पलें, डाली पर
शहतूत।।
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धुँधला सा नभ हो गया, बरसा नभ
से नीर।
बदला मौसम तो हुआ, मनवा
बहुत अधीर।।
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उपवन में मिलने लगा, भँवरों को मकरन्द।
कुदरत की शीतल हवा, देती है
आनन्द।।
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लीची बौरायी हुई, ललचाते
हैं आम।
खरबूजा-तरबूज की, शोभा है
अभिराम।।
--
अभी पहाड़ों पर खिले, सुन्दर-सुन्दर
फूल।
काफल और बुराँस का, शरबत है
अनुकूल।।
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कानन में खिलते सुमन, बाँट रहे उपहार।
होली के सामान से, सजा हुआ बाजार।।
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हँसते-खिलते चमन में, करना मत कुहराम।
लज्जित हो इंसानियत, करो न ऐसे काम।।
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सोमवार, 2 मार्च 2020
दोहे "करना मत कुहराम" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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अति मनभावन सृजन आ0
जवाब देंहटाएंहमेशा की तरह शानदार सृजन।
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