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सेवा का व्रत धार लिया है।
मानवता से प्यार किया है।।
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रंग बहुत थे ढंग बहुत थे,
कभी न उल्टा पथ अपनाया,
जिसको अपना मीत बनाया,
उसका पूरा साथ निभाया,
हमने सूई-धागा लेकर,
बैरी का भी वक्ष सिया है।
मानवता से प्यार किया है।।
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झंझावातों के दलदल में,
कभी किसी का हाथ न छोड़ा, शरणागत को गले लगाया, मर्यादा का साथ न तोड़ा, अमृत रहे बाँटते जग को, हमने केवल गरल पिया है। मानवता से प्यार किया है।। -- अपनी झोली में से हम तो, सच्चे मोती बाँट रहे है, बैर-भाव की खाई को हम, प्रेम-प्रीत से पाट रहे हैं, सन्तो ने जो सिखलाया है, जग को वो उपहार दिया है। मानवता से प्यार किया है।।
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शनिवार, 28 मार्च 2020
गीत "मानवता से प्यार किया है" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा रविवार(२९-०३-२०२०) को शब्द-सृजन-१४"मानवता "( चर्चाअंक - ३६५५) पर भी होगी।
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता सैनी
बहुत सुंदर रचना।
जवाब देंहटाएंसन्तो ने जो सिखलाया है,
जवाब देंहटाएंजग को वो उपहार दिया है।
मानवता से प्यार किया है।।
बहुत खूब ! अत्यंत सुन्दर !
मानवता को समर्पित बहुत ही सुंदर रचना सर ,सादर नमन
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना ।माववता के लिए सुंदर गीत सर !सादर नमन
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएं