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लीक पीटने का कहीं, छूट न जाय
रिवाज।
मना रहा है इसलिए, महिला-दिवस
समाज।।
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जग में अब भी हो रहे, मौखिक
जोड़-घटाव।
कैसे होगा दूर फिर, लिंग-भेद
का भाव।
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नारी की अपनी अलग, कैसे हो
पहचान।
ढोती है वो उमर भर, साजन का उपनाम।।
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सीमाओँ में है बँधी, नारी की
परवाज।
नारी की कमनीयता, कमजोरी है
आज।।
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सदियों से महिलाओं का, होता मर्दन मान।
अहंकार का पुरुष में, अब भी भाव प्रधान।।
केवल कागज-कलम में, नारी दुर्गा-रूप।
मान नहीं उसको मिला, पोथी के
अनुरूप।।
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अब तक भी परिवेश में, आया नहीं
सुधार।
केवल हैं कानून में, नारी के अधिकार।।
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शक्ति-स्वरूपा हो भले, माता का अवतार।
नारी की सुनता नहीं, कोई करुण
पुकार।।
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आओ महिलादिवस पर, ऐसे करें
उपाय।
जग में नारी-जाति पर, कहीं न हो
अन्याय।।
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शनिवार, 7 मार्च 2020
दोहे अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस "माता का अवतार" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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वाह!!!!
जवाब देंहटाएंहमेशा की तरह लाजवाब...।