नभ में कुहरा है घना, गया दिवाकर हार।
होली के इस पर्व मे, ठण्डक का उपहार।।
कहीं-कहीं ओले पड़े, कहीं हुई बरसात।
मार्च मास में हो रहा, पर्वत पर हिमपात।।
देवभूमि में हो रहा, शीतलता का वास।
बदले मौसम में हुई, होली बहुत उदास।।
हाथ जोड़कर दूर से, करना राम-जुहार।
कोरोना का वायरस, पग को रहा पसार।।
यह जीवन अनमोल है, मोक्ष-धर्म की डोर।
गलबहियों को डालकर, करना मत कमजोर।।
बार-बार मिलता नहीं, जीवन का उपहार।
होली का शुभ पर्व तो, आयेगा हर बार।।
ऋषि-मुनियों की रीत को, जीवन में लो धार।
फूलों से ही खेलिए, होली को हर बार।।
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सोमवार, 9 मार्च 2020
दोहे "होली बहुत उदास" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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सादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (10 -3-2020 ) को " होली बहुत उदास " (चर्चाअंक -3636 ) पर भी होगी
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये। आप भी सादर आमंत्रित हैं।
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कामिनी सिन्हा
सामयिक रचना
जवाब देंहटाएंसामायिक यथार्थ दोहे ।
जवाब देंहटाएंशानदार सृजन ।
रंगोंत्सव पर हार्दिक शुभकामनाएं।