गये साल को है प्रणाम!
है नये साल का अभिनन्दन।।
लाया हूँ स्वागत करने को
थाली में कुछ अक्षत-चन्दन।।
है नये साल का अभिनन्दन।।
गंगा की धारा निर्मल हो,
मन-सुमन हमेशा खिले रहें,
हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई के,
हृदय हमेशा मिले रहें,
पूजा-अजान के साथ-साथ,
होवे भारतमाँ का वन्दन।
है नये साल का अभिनन्दन।।
नभ से बरसें सुख के बादल,
धरती की चूनर धानी हो,
गुरुओं का हो सम्मान सदा,
जन मानस ज्ञानी-ध्यानी हो,
भारत की पावन भूमि से,
मिट जाए रुदन और क्रन्दन।
है नये साल का अभिनन्दन।।
नारी का अटल सुहाग रहे,
निश्छल-सच्चा अनुराग रहे,
जीवित जंगल और बाग रहें,
सुर सज्जित राग-विराग रहें,
सच्चे अर्थों में तब ही तो,
होगा नूतन का अभिनन्दन।
है नये साल का अभिनन्दन।।
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सोमवार, 31 दिसंबर 2012
"नूतन वर्षाभिनन्दन" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
रविवार, 30 दिसंबर 2012
"मुखौटे राम के" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
लुटेरे ओढ़ पीताम्बर, लगे खाने-कमाने में।।
दया के द्वार पर, बैठे हुए हैं लोभ के पहरे,
मिटी सम्वेदना सारी, मनुज के स्रोत है बहरे,
सियासत के भिखारी व्यस्त हैं कुर्सी बचाने में।
लुटेरे ओढ़ पीताम्बर लगे खाने-कमाने में।।
जो सदियों से नही सी पाये, अपने चाकदामन को,
छुरा ले चल पड़े हैं हाथ वो, अब काटने तन को,
वो रहते भव्य भवनों में, कभी थे जो विराने में।
लुटेरे ओढ़ पीताम्बर लगे खाने-कमाने में।।
युवक मजबूर होकर खींचते हैं रात-दिन रिक्शा,
मगर कुत्ते और बिल्ले कर रहें हैं दूध की रक्षा,
श्रमिक का हो रहा शोषण, धनिक के कारखाने में।
लुटेरे ओढ़ पीताम्बर लगे खाने-कमाने में।।
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शनिवार, 29 दिसंबर 2012
"देश की बेटी दामिनी" (भावभीनी श्रद्धांजलि!)
शुक्रवार, 28 दिसंबर 2012
"गधे चबाते हैं काजू, महँगाई खाते बेचारे" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
नव-वर्ष खड़ा द्वारे-द्वारे!
गधे चबाते हैं काजू,
महँगाई खाते बेचारे!!
काँपे माता काँपे बिटिया, भरपेट न जिनको भोजन है,
क्या सरोकार उनको इससे, क्या नूतन और पुरातन है,
सर्दी में फटे वसन फटे सारे!
नव-वर्ष खड़ा द्वारे-द्वारे!!
जो इठलाते हैं दौलत पर, वो खूब मनाते नया-साल,
जो करते श्रम का शीलभंग,वो खूब कमाते द्रव्य-माल,
वाणी में केवल हैं नारे!
नव-वर्ष खड़ा द्वारे-द्वारे!!
नव-वर्ष हमेशा आता है, सुख के निर्झर अब तक न बहे,
सम्पदा न लेती अंगड़ाई, कितने दारुण दुख-दर्द सहे,
मक्कारों के वारे-न्यारे!
नव-वर्ष खड़ा द्वारे-द्वारे!!
रोटी-रोजी के संकट में, नही गीत-प्रीत के भाते हैं,
कहने को अपने सारे हैं, पर झूठे रिश्ते-नाते हैं,
सब स्वप्न हो गये अंगारे!
नव-वर्ष खड़ा द्वारे-द्वारे!!
टूटा तन-मन भी टूटा है, अभिलाषाएँ ही जिन्दा हैं,
आयेगीं जीवन में बहार, यह सोच रहा कारिन्दा हैं,
कब चमकेंगें नभ में तारे!
नव-वर्ष खड़ा द्वारे-द्वारे!!
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गुरुवार, 27 दिसंबर 2012
"आओ नूतन वर्ष मनायें" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
बुधवार, 26 दिसंबर 2012
"कैसे नूतन सृजन करूँ मैं" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
सबकुछ वही पुराना सा है!
कैसे नूतन सृजन करूँ मैं?
कभी चाँदनी-कभी अँधेरा,
लगा रहे सब अपना फेरा,
जग झंझावातों का डेरा,
असुरों ने मन्दिर को घेरा,
देवालय में भीतर जाकर,
कैसे अपना भजन करूँ मैं?
कैसे नूतन सृजन करूँ मैं?
वो ही राग-वही है गाना,
लाऊँ कहाँ से नया तराना,
पथ तो है जाना-पहचाना,
लेकिन है खुदगर्ज़ ज़माना,
घी-सामग्री-समिधा के बिन,
कैसे नियमित यजन करूँ मैं?
कैसे नूतन सृजन करूँ मैं?
बना छलावा पूजन-वन्दन
मात्र दिखावा है अभिनन्दन
चारों ओर मचा है क्रन्दन,
बिखर रहे सामाजिक बन्धन,
परिजन ही करते अपमानित,
कैसे उनको सुजन करूँ मैं?
गुलशन में पादप लड़ते हैं,
कमल सरोवर में सड़ते हैं,
कदम नहीं आगे बढ़ते हैं,
पावों में कण्टक गड़ते है,
पतझड़ की मारी बगिया में,
कैसे मन को सुमन करूँ मैं?
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मंगलवार, 25 दिसंबर 2012
"सामयिक दोहे" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
न्यायालय में सभी को, शीघ्र सुलभ हो न्याय।
मिट जायेगा वतन से, जल्दी ही अन्याय।१। सारी दुनिया जानती, नारी नर की खान। लेकिन फिर भी हो रहा, नारी का अपमान।२। दुराचारियों को मिले, फाँसी जैसा दण्ड। कैसे फिर ठहरे यहाँ, कोई भी उद्दण्ड।३। प्रजातन्त्र में सभी को, कहने का अधिकार। सत्याग्रह में हो रहा, फिर क्यों डण्ड प्रहार।४। कुहरा छाया गगन में, देता है सन्देश।
गुस्से पर काबू करो, बने शान्त परिवेश।५।
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सोमवार, 24 दिसंबर 2012
"उच्चारण की सबसे लोकप्रिय प्रविष्टि"
रविवार, 23 दिसंबर 2012
"मंडराती हैं चील चमन में" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
सज्जनता बेहोश हो गई,
दुर्जनता पसरी आँगन में।
कोयलिया खामोश हो गई,
मंडराती हैं चील चमन में।।
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अबलाओं के कपड़े फाड़े,
लज्जा के सब गहने तारे,
यौवन के बाजार लगे हैं,
नग्न-नग्न शृंगार सजे हैं,
काँटें बिखरे हैं कानन में।
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मानवता की झोली खाली,
दानवता की है दीवाली,
कितना है बेशर्म-मवाली,
अय्यासी में डूबा माली,
दम घुटता है आज वतन में।
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रवि ने शीतलता फैलाई,
पूनम ताप बढ़ाने आई,
बदली बेमौसम में छाई,
धरती पर फैली है काई,
दशा देख दुख होता मन में।
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सुख की खातिर पश्चिमवाले,
आते हैं होकर मतवाले,
आज रीत ने पलटा खाया,
हमने उल्टा पथ अपनाया,
खोज रहे हम सुख को धन में।
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श्वान पालते बालों वाले,
बौने बने बड़े मनवाले,
जो थे राह दिखाने वाले,
भटक गये हैं बीहड-वन में।
मंडरातीं हैं चील चमन में।।
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शनिवार, 22 दिसंबर 2012
"जीवन जीना है दूभर" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
शुक्रवार, 21 दिसंबर 2012
"पड़ने वाले नये साल के हैं कदम" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
पड़ने वाले नये साल के हैं कदम!
स्वागतम्! स्वागतम्!! स्वागतम्!!! कोई खुशहाल है. कोई बेहाल है, अब तो मेहमान कुछ दिन का ये साल है, ले के आयेगा नव-वर्ष चैनो-अमन! स्वागतम्! स्वागतम्!! स्वागतम्!!! रौशनी देगा तब अंशुमाली धवल, ज़र्द चेहरों पे छायेगी लाली नवल, मुस्कुरायेंगे गुलशन में सारे सुमन! स्वागतम्! स्वागतम्!! स्वागतम्!!! धन से मुट्ठी रहेंगी न खाली कभी, अब न फीकी रहेंगी दिवाली कभी. मस्तियाँ साथ लायेगा चंचल पवन! स्वागतम्! स्वागतम्!! स्वागतम्!!! |
गुरुवार, 20 दिसंबर 2012
"दोहा सप्तक" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
गांधी जी के नाम को, भुना रहे हैं लोग।
गांधी के ही नाम से, चला रहे उद्योग।७।
बुधवार, 19 दिसंबर 2012
"काम अपना तमाम करते हैं" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
सुबह करते हैं, शाम करते हैं
हर खुशी तेरे नाम करते हैं
ओढ़ करके ग़मों की चादर को काम अपना तमाम करते हैं जब भी दैरो-हरम में जाते हैं हम तिरा एहतराम करते हैं देख करके जईफ लोगों को
हम अदब से सलाम करते हैं
ज़िन्द्ग़ी चार दिन का खेला है
किसलिए कत्लो-आम करते हैं
आशिकों की यही हक़ीक़त है "रूप" उनको गुलाम करते हैं |
मंगलवार, 18 दिसंबर 2012
"रिश्ते-नाते प्यार के" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
ढंग निराले होते जग में, मिले जुले परिवार के।
देते हैं आनन्द अनोखा, रिश्ते-नाते प्यार के।।
चमन एक हो किन्तु वहाँ पर, रंग-विरंगे फूल खिलें,
मधु से मिश्रित वाणी बोलें, इक दूजे से लोग मिलें,
ग्रीष्म-शीत-बरसात सुनाये, नगमें सुखद बहार के।
देते हैं आनन्द अनोखा, रिश्ते-नाते प्यार के।।
पंचम सुर में गाये कोयल, कलिका खुश होकर चहके,
नाती-पोतों की खुशबू से, घर की फुलवारी महके,
माटी के कण-कण में गूँजें, अभिनव राग सितार के।
देते हैं आनन्द अनोखा, रिश्ते-नाते प्यार के।।
नग से भू तक, कलकल करती, सरिताएँ बहती जायें,
शस्यश्यामला अपनी धरती, अन्न हमेशा उपजायें,
मिल-जुलकर सब पर्व मनायें, थाल सजें उपहार के।
देते हैं आनन्द अनोखा, रिश्ते-नाते प्यार के।।
गुरूकुल हों विद्या के आलय, बिके न ज्ञान दुकानों में,
नहीं कैद हों बदन हमारे, भड़कीले परिधानों में,
चाटुकार-मक्कार बनें ना, जनसेवक सरकार के।
देते हैं आनन्द अनोखा, रिश्ते-नाते प्यार के।।
बरसें बादल-हरियाली हो, बुझे धरा की प्यास यहाँ, चरागाह में गैया-भैंसें, चरें पेटभर घास जहाँ, झूम-झूमकर सावन लाये, झोंके मस्त बयार के। देते हैं आनन्द अनोखा, रिश्ते-नाते प्यार के।। |
सोमवार, 17 दिसंबर 2012
"ग़ज़ल - गुरूसहाय भटनागर बदनाम" (प्रस्तोता-डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
मोहब्बत की हसीं राहें
तुम्हारे प्यार को खुश्बू बसा, इस दिल में लाया हूँ
मोहब्बत की हसीं राहों में, यादें छोड़ आया हूँ
कभी जब याद करके गाँव की, गलियों से गुजरेगें
मैं अपनी खिल-खिलाहट के वो मंजर छोड़ आया हूँ
मेरी उल्फत की यादें, जब कभी तुम भूल जाओगे
चुभाने के लिये दिल में, मैं काँटे छोड़ आया हूँ
जहाँ में खुश्बू-ए-गुल सा महकना, घर को महकाना
तुम्हारे बन्द कमरों में, उजाले छोड़ आया हूँ
तमन्नाओं को मेरी, तुमने अपना रंग दे डाला
दुआयें खुशनसीबी की, तुम्हें मैं छोड़ आया हूँ
उन्हें अब दायरों में बाँधना, “बदनाम” करना है
महकने और महकाने को, गुलशन छोड़ आया हूँ।
(गुरू सहाय भटनागर "बदनाम")
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रविवार, 16 दिसंबर 2012
"मिलन की आस" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
शनिवार, 15 दिसंबर 2012
"भारत बहुत महान!" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
अचरज में है हिन्दुस्तान!!
शुक्रवार, 14 दिसंबर 2012
"कम्प्यूटर" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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