लुटेरे ओढ़ पीताम्बर, लगे खाने-कमाने में।।
दया के द्वार पर, बैठे हुए हैं लोभ के पहरे,
मिटी सम्वेदना सारी, मनुज के स्रोत है बहरे,
सियासत के भिखारी व्यस्त हैं कुर्सी बचाने में।
लुटेरे ओढ़ पीताम्बर लगे खाने-कमाने में।।
जो सदियों से नही सी पाये, अपने चाकदामन को,
छुरा ले चल पड़े हैं हाथ वो, अब काटने तन को,
वो रहते भव्य भवनों में, कभी थे जो विराने में।
लुटेरे ओढ़ पीताम्बर लगे खाने-कमाने में।।
युवक मजबूर होकर खींचते हैं रात-दिन रिक्शा,
मगर कुत्ते और बिल्ले कर रहें हैं दूध की रक्षा,
श्रमिक का हो रहा शोषण, धनिक के कारखाने में।
लुटेरे ओढ़ पीताम्बर लगे खाने-कमाने में।।
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रविवार, 30 दिसंबर 2012
"मुखौटे राम के" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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वाह, बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंसही आंकलन
जवाब देंहटाएंबहुत सही सार्थक अभिव्यक्ति भारत सरकार को देश व्यवस्थित करना होगा .
जवाब देंहटाएंwaah...great creation.
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर सम-सामायिक रचना.
जवाब देंहटाएंसार्थक ,बहुत सुंदर रचना.
जवाब देंहटाएंमुखौटे राम के पहने हुए, रावण जमाने में।
लुटेरे ओढ़ पीताम्बर, लगे खाने-कमाने में।।
दया के द्वार पर, बैठे हुए हैं लोभ के पहरे,
मिटी सम्वेदना सारी, मनुज के स्रोत है बहरे,
सियासत के भिखारी व्यस्त हैं कुर्सी बचाने में।
लुटेरे ओढ़ पीताम्बर लगे खाने-कमाने में।।
जवाब देंहटाएं"मुखौटे राम के पहने हुए, रावण जमाने में।
लुटेरे ओढ़ पीताम्बर, लगे खाने-कमाने में…"
-सटीक व सुन्दर रचना.....
---हाँ..पर प्रश्न है...
---सही है बात ये सारी, मगर इतना बता ऐ दोस्त! ,
कि क्यों एसा हुआ है प्रगति के भी इस जमाने में |
सार्थक अभिवयक्ति |
जवाब देंहटाएंनये साल पर कुछ बेहतरीन ग्रीटिंग आपके लिए
सत्ता के गलियारे में सब रावन ही है.सार्थक अभिवयक्ति
जवाब देंहटाएंमुखौटे राम के पहने हुए, रावण जमाने में।
लुटेरे ओढ़ पीताम्बर, लगे खाने-कमाने में।।
बहुत ही सुन्दर ..
जवाब देंहटाएं