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सब कुछ नकली सही कहा ..
जवाब देंहटाएंआप की यह रचना 'सचाई'की 'बनावट'पर एक 'मुहर' है |इन शब्दों के साथ वधाई |पुन:वधाए विगत 'वैवाहिक स्मृति-दिवस' की |
जवाब देंहटाएं'सांच' को आँच नहीं |
'हीरा होता 'कांच' नहीं ||
हम हैं 'सच' के दीवाने' हाँ -
'झूठ की पुस्तक' बांच नहीं ||
मौलिक रचना लुप्त हो गई,
जवाब देंहटाएंनाट्य-कला सब सुप्त हो गई,
भूल गये संगीत सुरीला,
कर्कश सुर आ गये राग में।
वाह,,,बहुत लाजबाब रचना....
recent post: रूप संवारा नहीं,,,
Bahut khari khari sunai hai spne....bahut hi bsdhiya
जवाब देंहटाएंआपकी इस उत्कृष्ट पोस्ट की चर्चा बुधवार (12-12-12) के चर्चा मंच पर भी है | जरूर पधारें |
जवाब देंहटाएंसूचनार्थ |
कैसे पायेंगे सोंधापन..
जवाब देंहटाएं"नस्ल विदेशी उगा रहे सब,
जवाब देंहटाएंझूले कैसे पड़ें बाग में?"
अति सुंदर
बहुत सही कहा है आपने |
जवाब देंहटाएंआशा
आज का सच आपने दिखाया है इस कविता में।
जवाब देंहटाएंarthpurn va samayik srijan ...
जवाब देंहटाएंबहुत सही कहा है आज का सच ********^^^^^^^********दूध नही मिलता है असली,
जवाब देंहटाएंइसीलिए है घी भी नकली,
सेहत कैसे ठीक रहेगी,
जहर मिला है हरे साग में।
नस्ल विदेशी उगा रहे सब,
झूले कैसे पड़ें बाग में?
पेड़ पौधे विदेशी,
जवाब देंहटाएंखान -पान विदेशी ,
कपडे भी विदेशी .
विदेशी कपडे में लिपटे नकली देशी .
आजकल पश्चिमी देशों की नक़ल फैशन है.
: बहुत अच्छा और सामयिक रचना:
मेरी नई पोस्ट "गजल "
आँगन के सब नीम कट गये,
जवाब देंहटाएंपेड़ आम के जले आग में।
नस्ल विदेशी उगा रहे सब,
झूले कैसे पड़ें बाग में?
बस रही सही कसर वालमार्ट पूरी कर देगा।
गीत मनोहर रीत मनोहर ,शास्त्री जी की प्रीत मनोहर .
जवाब देंहटाएंबहुत सार्थक रचना आज की सच्चाई को आइना दिखाती हई बहुत सुन्दर लिखा बधाई आपको
जवाब देंहटाएंबदलती आबोहवा पर करारा कटाक्ष करती, सामाजिक दंश के दर्द को अभिव्यक्त करती इस कविता के लिए मेरी भी बधाई स्वीकार करें शास्त्री जी।
जवाब देंहटाएंएक सच के साथ ...बढिया कटाक्ष
जवाब देंहटाएंअति उत्तम रचना। बधाई।
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