ढंग निराले होते जग में, मिले जुले परिवार के।
देते हैं आनन्द अनोखा, रिश्ते-नाते प्यार के।।
चमन एक हो किन्तु वहाँ पर, रंग-विरंगे फूल खिलें,
मधु से मिश्रित वाणी बोलें, इक दूजे से लोग मिलें,
ग्रीष्म-शीत-बरसात सुनाये, नगमें सुखद बहार के।
देते हैं आनन्द अनोखा, रिश्ते-नाते प्यार के।।
पंचम सुर में गाये कोयल, कलिका खुश होकर चहके,
नाती-पोतों की खुशबू से, घर की फुलवारी महके,
माटी के कण-कण में गूँजें, अभिनव राग सितार के।
देते हैं आनन्द अनोखा, रिश्ते-नाते प्यार के।।
नग से भू तक, कलकल करती, सरिताएँ बहती जायें,
शस्यश्यामला अपनी धरती, अन्न हमेशा उपजायें,
मिल-जुलकर सब पर्व मनायें, थाल सजें उपहार के।
देते हैं आनन्द अनोखा, रिश्ते-नाते प्यार के।।
गुरूकुल हों विद्या के आलय, बिके न ज्ञान दुकानों में,
नहीं कैद हों बदन हमारे, भड़कीले परिधानों में,
चाटुकार-मक्कार बनें ना, जनसेवक सरकार के।
देते हैं आनन्द अनोखा, रिश्ते-नाते प्यार के।।
बरसें बादल-हरियाली हो, बुझे धरा की प्यास यहाँ, चरागाह में गैया-भैंसें, चरें पेटभर घास जहाँ, झूम-झूमकर सावन लाये, झोंके मस्त बयार के। देते हैं आनन्द अनोखा, रिश्ते-नाते प्यार के।। |
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मंगलवार, 18 दिसंबर 2012
"रिश्ते-नाते प्यार के" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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सुख अलग ही देते हैं, रिश्ते-नाते प्यार ।
जवाब देंहटाएंजीवन को चल रखे सदैव, अपनत्व की बौछार ।।
आपकी इस उत्कृष्ट पोस्ट की चर्चा बुधवार (19-12-12) के चर्चा मंच पर भी है | अवश्य पधारें |सूचनार्थ |
बहुत ही सुन्दर रचना ..
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना ,आभार :
जवाब देंहटाएंनई पोस्ट -केंद्रीय विद्यालय -स्वर्ण जयंती
सुन्दर लेखनी !!
जवाब देंहटाएंचमन एक हो किन्तु वहाँ पर, रंग-विरंगे फूल खिलें,
जवाब देंहटाएंमधु से मिश्रित वाणी बोलें, इक दूजे से लोग मिलें,
ग्रीष्म-शीत-बरसात सुनाये, नगमें सुखद बहार के।
देते हैं आनन्द अनोखा, रिश्ते-नाते प्यार के।। बहुत सुन्दर रचना ,आभार :
ढंग निराले होते जग में, मिले जुले परिवार के।
जवाब देंहटाएंदेते हैं आनन्द अनोखा, रिश्ते-नाते प्यार के।
बहुत सुन्दर !
बहुत ही सार्थक उद्घोष किया है, सुन्दर रचना।
जवाब देंहटाएंदेते हैं आनन्द अनोखा, रिश्ते-नाते प्यार के।।......sahi kahe....
जवाब देंहटाएंबेहतरीन,बहुत ही सार्थक सुन्दर रचना।
जवाब देंहटाएंrecent post: वजूद,
सार्थक सुन्दर रचना।..आभार
जवाब देंहटाएंसुन्दर,उम्दा प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया
जवाब देंहटाएंअच्छी रचना
रिश्तों की महत्ता को शब्दों के सांचे में ढाल कर बड़ी ख़ूबसूरती से वर्णन किया है |
जवाब देंहटाएंटिप्स हिंदी में की नयी पोस्ट : गूगल वेब फॉण्ट का प्रयोग अपने ब्लॉग पर कैसे करें ?
रचना को कोई एक शेर पसंद होता तो कॉपी करके कहता की ये पसंद आया.लेकिन इस रचना के हर हर शेर अपने अन्दर एक अपनापन लिए इतने सुन्दर बन पड़े हैं की ये दिल से कह सकता हूँ की सभी पसंद आये.
जवाब देंहटाएंअच्छी रचना।
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जवाब देंहटाएंवाह शास्त्री जी एक ही रचना में जोश खरोश भी सौन्दर्य और कोमलता भी भाषिक कोमलता भी .
बरसें बादल-हरियाली हो, बुझे धरा की प्यास यहाँ,
चरागाह में गैया-भैंसें, चरें पेटभर घास जहाँ,
झूम-झूमकर सावन लाये, झोंके मस्त बयार के।
देते हैं आनन्द अनोखा, रिश्ते-नाते प्यार के।।
जवाब देंहटाएंवाह शास्त्री जी एक ही रचना में जोश खरोश भी सौन्दर्य और कोमलता भी भाषिक कोमलता भी .
बरसें बादल-हरियाली हो, बुझे धरा की प्यास यहाँ,
चरागाह में गैया-भैंसें, चरें पेटभर घास जहाँ,
झूम-झूमकर सावन लाये, झोंके मस्त बयार के।
देते हैं आनन्द अनोखा, रिश्ते-नाते प्यार के।।
एक बात और शास्त्री जी इस रचना को -इस धुन में गाके देखी मीटर पूरा आता है -
आओ बच्चो तुम्हें दिखाएँ झांकी हिन्दुस्तान की ,इस मिट्टी से तिलक करो ये धरती है बलिदान की .
bahut hee sundar hiiiiiiiiiiiiiii sar g
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