रंग बरसते हैं फागुन में, पीले-हरे-गुलाबी।
फाग खेलने को आये हैं,
बादल आज शराबी।।
मस्ती में ये उमड़-घुमड़कर, करते हैं मनचाही,
चन्दा के उजले माथे पर, पोत रहे हैं स्याही,
शर्म-लिहाज आज तो इनको, आती नहीं ज़रा भी।
फाग खेलने को आये हैं,
बादल आज शराबी।।
सरसों फूली हुई खेत में, गेहूँ हुए सुनहरे,
फूलों-कलियों के आँगन में, भँवरे आकर ठहरे,
खोल रहे लज्जा के ताले, लेकर अपनी चाबी।
फाग खेलने को आये हैं, बादल आज शराबी।।
कलकल-छलछल बहती जाती, सरिताओं में धारा,
निर्मल जल सागर में जाकर, बन जाता है खारा,
आज प्रदूषण जन-जीवन में, करता बहुत खराबी।
फाग खेलने को आये हैं, बादल आज शराबी।।
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शुक्रवार, 29 मार्च 2013
"बादल हुआ शराबी" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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बहुत सुन्दर शब्द चित्रण.
जवाब देंहटाएंbhasha,bhav aym sanyojan ki bejod prastuti,sadar
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति !!
जवाब देंहटाएंआभार आदरणीय !!
बहुत सुन्दर,इन पर भी आधुनिक सभ्यता का असर हो गया है !
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी रचना...
जवाब देंहटाएंमस्ती में ये उमड़-घुमड़कर, करते हैं मनचाही,
चन्दा के उजले माथे पर, पोत रहे हैं स्याही,
सुन्दर!!!
सादर
अनु
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा शनिवार (30-3-2013) के चर्चा मंच पर भी है ।
जवाब देंहटाएंसूचनार्थ!
बहुत सुंदर भावअभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंशास्त्री जी ,,,इस पोस्ट को कल के चर्चा मंच में प्रकाशित करने का कष्ट करे,,,आभार,,,
RECENT POST: होली की हुडदंग ( भाग -२ )
बहुत ही बढ़िया सर!
जवाब देंहटाएंसादर
आज कल मौसम फिर से करवट ले रहा है ...
जवाब देंहटाएंवाह वाह.. .बहुत खूब
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर..
जवाब देंहटाएंवाह....बेहतरीन प्रभु...होली मुबारक!!
जवाब देंहटाएंबहुत बढियाँ .. आप बहुत अच्छा लिखतेँ ।
जवाब देंहटाएंमेरा ठिकाना _>> वरुण की दुनियाँ
बहुत सुन्दर....होली की हार्दिक शुभकामनाएं ।।
जवाब देंहटाएंपधारें कैसे खेलूं तुम बिन होली पिया...
फागुन के मद में मतवाले बादलों कि मनमानी ,,,बहुत सुन्दर प्रस्तुति ...
जवाब देंहटाएं