जवानी ढलेगी मगर धीरे-धीरे
करेगा बुढ़ापा असर धीरे-धीरे
सहारा छड़ी का ही लेना पड़ेगा
झुकेगी सभी की कमर धीरे-धीरे
आँखों पे चश्मा लगाना पड़ेगा
कमजोर होगी नजर धीरे-धीरे
नहीं साथ देगा कुटुम और कबीला
कठिन सी लगेगी डगर धीरे-धीरे
यही फलसफा जिन्दगी का है यारों
कटेगी अकेले उमर धीरे-धीरे
नहीं “रूप” की धूप हरदम खिलेगी
अँधेरे में होगा सफर धीरे-धीरे |
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मंगलवार, 15 अक्टूबर 2013
"झुकेगी कमर धीरे-धीरे" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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“रूप” की धूप हरदम नहीं साथ देगी
जवाब देंहटाएंअन्धेरों में होगा सफर धीरे-धीरे
सब कुछ धीरे धीरे हो तो ही अच्छा है...
जवाब देंहटाएंहमेशा धीरे धीरे कुछ भी होना अच्छा नहीं माना जाता और किसी को अपना काम धीरे धीरे हो ये अच्छा भी नहीं लगता
हटाएंआदरणीय शास्त्री जी प्रणाम, इस जीवन में आकर देरी से जुड़ने वाला जीवन साथी का रिश्ता ही सबसे देरी तक साथ निभाता है। फिर अकेले रह जाने पर
जवाब देंहटाएंजीवन साथी की याद में
सिसकियां भरेंगे धीरे धीरे
आपको सुन्दर रचना के लिए बधाई !
बहुत खूब !
जवाब देंहटाएंहमें भी दिख रही है कमर धीरे धीरे !
बेहतरीन ग़ज़ल लिखी है शास्त्री जी...
जवाब देंहटाएंयही फलसफा जिन्दगी का बना है
जवाब देंहटाएंकटेगी ये लम्बी उमर धीरे - धीरे,,,,
बेहतरीन ग़ज़ल...!
कुछ जल्दी नहीं होगा क्या
जवाब देंहटाएंजिंदगी का फलसफा तो यही है , सादर .
जवाब देंहटाएंनहीं साथ देगा कुटुम और कबीला
जवाब देंहटाएंकठिन सी लगेगी डगर धीरे-धीरे
यही फलसफा जिन्दगी का है यारों
कटेगी अकेले उमर धीरे-धीरे
नहीं “रूप” की धूप हरदम खिलेगी
अँधेरे में होगा सफर धीरे-धीरे
बहुत खूब कहा है।
इस पोस्ट की चर्चा, बृहस्पतिवार, दिनांक :-17/10/2013 को "हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल {चर्चामंच}" चर्चा अंक -26 पर.
जवाब देंहटाएंआप भी पधारें, सादर ....
जीवन का फलसफा .. समझेगे लोग ...मगर धीरे धीरे ... :) उम्दा रचना .. सादर नमन ..
जवाब देंहटाएंनहीं साथ देगा कुटुम और कबीला
कठिन सी लगेगी डगर धीरे-धीरे
यही फलसफा जिन्दगी का है यारों
कटेगी अकेले उमर धीरे-धीरे
नहीं “रूप” की धूप हरदम खिलेगी
अँधेरे में होगा सफर धीरे-धीरे
बहुत सुन्दर ...नमस्ते
जवाब देंहटाएंवाह वाह ... बहुत ही लाजवाब .... जीवन का फलसफा लिख डाला ...
जवाब देंहटाएंराम राम शास्त्री जी ...
गरिमामय हो वृद्ध अवस्था
जवाब देंहटाएं