बेचारों के चारे को वो पचा न पाया।
संसद का शैतान स्वयं को बचा न पाया।।
माना थे हम मूक, मगर आहें थीं मोटी,
लगी उसे ही, जिसने छीनी अपनी रोटी,
रास महल में रहने वाला, रचा न पाया।
संसद का शैतान स्वयं को बचा न पाया।।
नहीं हमेशा अनाचार-अन्याय फलेगा,
हमको था विश्वास, कभी तो न्याय मिलेगा,
संविधान को कुशल मदारी, नचा न पाया।
संसद का शैतान स्वयं को बचा न पाया।।
उसकी लाठी में कोई आवाज नहीं थी,
न्याय-व्यवस्था थी, जंगल का राज नहीं थी,
मार पड़ी तो शोर जरा भी मचा न पाया।
संसद का शैतान स्वयं को बचा न पाया।।
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गुरुवार, 3 अक्टूबर 2013
"संसद का शैतान" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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बहुत सुन्दर प्रस्तुति, आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (04-10-2013) को " लोग जान जायेंगे (चर्चा -1388)
जवाब देंहटाएं" पर लिंक की गयी है,कृपया पधारे.वहाँ आपका स्वागत है.
जैसा खाया, वैसा पाया,
जवाब देंहटाएंसम्मानों की बलि दे आया।
पाप का घडा भर गया था !
जवाब देंहटाएंनवीनतम पोस्ट मिट्टी का खिलौना !
नई पोस्ट साधू या शैतान
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नहीं हमेशा अनाचार-अन्याय फलेगा,
हमको था विश्वास, कभी तो न्याय मिलेगा,
संविधान को कुशल मदारी, नचा न पाया।
संसद का शैतान स्वयं को बचा न पाया।।
वाऽहऽऽ…!
इस शैतान से बड़े और भी बहुत सारे शैतान और डायनें हैं अभी सलाखों के पीछे भेजे जाने के लिए...
सुंदर सामयिक निर्भीक ईमानदार रचना के लिए आदरणीय डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' जी
आपके प्रति हृदय से साधुवाद !
सुंदर रचना के लिए बधाई !
आपकी लेखनी से सदैव सुंदर श्रेष्ठ सार्थक सृजन होता रहे...
मंगलकामनाओं सहित...
-राजेन्द्र स्वर्णकार
ye to hona hee thaa
जवाब देंहटाएंसटीक रचना !!
जवाब देंहटाएंहाहाहा बहुत सही कटाक्ष किया है शास्त्री जी ,किन्तु वो चुप नहीं है छटपटा रहा है सुप्रीमकोर्ट जाएगा ,ये सियासती हथकंडे और इनकी माया !!! इस बढ़िया पोस्ट के लिए हार्दिक बधाई सादर
जवाब देंहटाएंsundar rachna moujuda halat pr uttam ktaksh sadar naman
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